अभिलाषा ©लवी द्विवेदी


 हे अविचल अविरल अलख अलंकृत अवनी, 

सम मधुर सुधारस सरस सरल सरिता सी। 

क्या प्रीत मोहना क्या विस्तृत जिज्ञासा, 

ज्यों मध्य रही रजनी वियोग कविता सी। 


जीवंत हृदय की विषम व्यग्र अभिलाषा, 

क्षण भर की कल-कल दृग दुविधा से बाधित। 

निर्णय क्या निर्णायक भी अंतर स्थल, 

है और कहाँ गृह औषधि जल मनु आसित। 


मध्यम युग अम्बुज साँझ निरखि वह हर क्षण, 

वह रवि स्वर्णिम, हो कन्द युक्त ढलता है। 

क्षण-क्षण आभा अतिरम्य गगन सुंदरता, 

अत्यंत सुगम नभ बिम्ब मधुर बनता है। 


हाँ उसी पहर से चली समय गति निर्झर, 

मध्यम मध्यम सी आस पवन पावन की। 

मृदु एक अकेली अभिलाषा का चिंतन, 

वह रुदन समय असमय क्षण-क्षण सावन की। 


वह सावन जब रोया हरियाली बिखरी, 

निखरी हर क्षण हर पहर नहर नदियों में। 

है बाढ़ कहाँ रिमझिम सावन श्यामल घन, 

है रुदन अहो! करुणामय अलि कलियों में। 

 © लवी द्विवेदी

टिप्पणियाँ

  1. वाह्ह्हह्ह्ह्ह, अति सुंदर, उत्कृष्ट कविता 💐💐💐

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  2. अत्यंत सुंदर मनहर सृजन लवू ❤️❤️❤️❤️❤️

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  3. अत्यंत उत्कृष्ट एवं भावपूर्ण कविता 💐💐💐💐💐

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  4. अद्भुत अप्रतिम भावपूर्ण कविता 👌👌👌👌💐💐💐💐

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  5. बहुत बहुत सुंदर कविता 😍👌👌

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  6. अत्यंत अद्भुत कविता, दीदी जी 🌼👏🙏

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  7. उत्कृष्ट, भावपूर्ण कविता... वाह्हहहहहहहहहहहहहहहहहहह

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  8. उत्कृष्ट भाव..... वाह्हहहहहहहहहहह

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  9. अत्यंत सुंदर सृजन लवू, ❤️❤️❤️❤️

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