उठो! ©अंशुमान मिश्र

 सुमेरु छंद ( 19 मात्रा प्रति चरण)

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बंँधी  हैं  बेड़ियांँ  कर आज, तो क्या?

अमा का आज भू  पर राज, तो क्या?

नहीं सर पर किसी का हाथ, तो क्या?

नहीं   कोई  खड़ा   है  साथ, तो क्या?



बने   सम्बन्ध   ही  आबंध, तो क्या?

बहुत  है भार, थकता कंध, तो क्या?

नहीं  कोई  करे  स्वीकार, तो क्या?

विरोधी यदि सकल संसार, तो क्या?



अगर  रिपु  आत्म-संदेही  हृदय  है,

विदित  हो, तब तुम्हारी हार तय है!

उठो!  संसार   दर्शक   मात्र  सारा!

उठो! यह  युद्ध  है  तुमसे  तुम्हारा!



उठो छल-द्वेष-तम का काल बनकर,

धधकती-सी उठो तुम ज्वाल बनकर,

उठो!  उर  को  बना  कर्तव्य  शाला!

उठो  बन  भोर! है  आकाश  काला!



उठो!  संसार  ज्योतिर्मय करो  हे!

उठो! हुंकार  बन  निर्भय  भरो हे!

कि निज सम्मान आदर मांगता है!

उठो! यह नभ दिवाकर मांगता है!

       ©अंशुमान मिश्र

टिप्पणियाँ

  1. प्रेरक सुमेरु छंदबद्ध सृजन 🙏🏻

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  2. बहुत ही उत्कृष्ट 👏🏻👏🏻👏🏻

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  3. बहुत ही उत्कृष्ट 👏🏻👏🏻👏🏻

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  4. बहुत ही उत्कृष्ट 👏🏻👏🏻👏🏻

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  5. अतिरम्य, ओज पूर्ण छंद सृजन 👏☀

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  6. अत्यंत उत्कृष्ट, ओजपूर्ण सुमेरु छंद सृजन बेटा 👏👏👏💐💐💐

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  7. अतिसुंदर, प्रेरक छंद सृजन.... वाह्हहहहहहहहहहहहहहह

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  8. अति उत्तम एवं सार्थक संदेश देती हुई छंद रचना 💐💐💐💐

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