शहर में आ रही हो ©गुंजित जैन
तुम शहर में आ रही हो,
ट्रैन में इक, बैठकर के,
कुछ नए लम्हें बनाकर,
इस सफ़र में, इस सफ़र के।
भा रही हैं ये हवाएँ,
आज मौसम दिलकशी है,
इस ख़बर को सुन के मेरे,
सुर्ख़ गालों पर खुशी है।
दिलनशीं सी खुशबुएँ हैं,
बागबाँ दिल में खिला है,
हर दुआ पूरी हुई है,
फल ये सजदों का मिला है।
धड़कनें धीमी रहेंगी,
जब नज़र को तुम दिखोगी,
साथ होगा अब तुम्हारा,
हर छुअन महसूस होगी।
मैं बखूबी जानता हूँ,
तुम मुझे क्या मानती हो,
घर सजा मैंने रखा है,
बात ये क्या जानती हो?
सोचकर तुमको ज़हन में,
बेवजह मुस्का रहा हूँ,
मुझको सब कुछ भा रहा है,
मैं सभी को भा रहा हूँ।
पेड़ के साये में चलकर,
दूरियाँ हर नाप लेंगे,
आसमाँ देखेंगे मिलकर,
इन पहाड़ों पर चलेंगे।
रख रखी है वो मिठाई,
जो पसंदीदा तुम्हारी,
हर कहीं खोजूँ तुम्हें मैं,
हाय! कैसी बेक़रारी।
चैन आएगा मुझे अब,
सामने जब देख लूँगा,
ज़िन्दगी के कुछ पलों में,
ज़िन्दगी इक जी सकूँगा।
रात की ये चाँदनी भी,
रात-रानी सी खिलेगी,
धड़कनें गुंजित के दिल की,
आज गुंजित से मिलेगी।
चंद हर्फ़ों की ज़मीं पर,
बादलों सा छा रही हो,
आज पहली बार मिलने,
तुम शहर में आ रही हो।
©गुंजित जैन
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बहुत खूबसूरत
जवाब देंहटाएंसादर आभार🙏
हटाएंअत्यंत भावपूर्ण एवं हृदयस्पर्शी नज़्म 😍😍💐💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण नज़्म गुंजित बेटा 👌👌👌👌❤❤❤❤💐💐💐
जवाब देंहटाएंसादर आभार मैम🙏
हटाएंबहुत खूब भाई👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बहुत ही प्यारी रचना😍😍
जवाब देंहटाएंवाह बेहद खूबसूरत गुंजित 😍✨🙌🙌
जवाब देंहटाएंसादर आभार🙏
हटाएंबेहद खूबसूरत गुंजित 👌👌👌
जवाब देंहटाएंसादर आभार🙏
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