ग़ज़ल-नादाँ ©संजीव शुक्ला

 ज़िंदगी की जा-ब-जा फ़र्माइशों का क्या करें l

वक्त की बेवक्त की इन..बारिशों का क्या करें ll


साफगोई की बुरी फितरत से जो हासिल हुईं... 

जा-ब-जा नाइत्तिफाकी,रंजिशों का क्या करें ll


है हमारी ज़ुस्तज़ू ........... आवारगी नादानियाँ.... 

हैं अगर नादाँ तो हैं,हम दानिशों का क्या करें ll


रास आता ही नही हमको कतारों का चलन.... 

साथ हैं पर कारवाँ की बंदिशों का क्या करें ll


हैं परिंदे तो परिंदे...... गर कफस में हैं तो क्या...

तिश्नगी परवाज़,उनकी ख्वाहिशों का क्या करें ll


रास आयी जुगनुओं की मुख़्तसर सी रोशनी....

झील में  उतरे हज़ारों  महवशों का क्या करें ll


"रिक्त"ठंडी बारिशों की.......चाहतें ले उम्र भर....

दम ब दम दिल में सुलगती आतिशों का क्या करें ll

©संजीव शुक्ला 'रिक्त'

टिप्पणियाँ

  1. बेहद उम्दा गज़ल भाई 👌👌👌🙏🙏🙏💐💐💐

    जवाब देंहटाएं
  2. अहा क्या बात है सर... बेहतरीन ग़ज़ल 🙏🙏

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कविता- ग़म तेरे आने का ©सम्प्रीति

ग़ज़ल ©अंजलि

ग़ज़ल ©गुंजित जैन

पञ्च-चामर छंद- श्रमिक ©संजीव शुक्ला 'रिक्त'