मेरूदण्ड ©सौम्या शर्मा

 तुम बहुत नन्हें से थे!

सुकोमल पांव तुम्हारे!

जब आगे बढ़ने का प्रयास करते!

लड़खड़ाकर गिर जाते थे तुम!

पर तब वो बलिष्ठ हाथ!

थाम लेते थे तुम्हें!

वो उंगलियां पकड़ कर!

कोमल हस्त तुम्हारा!

चलना सिखाती थीं!

आज ना!

वही हाथ कांपते हैं!

ढूंढते हैं सहारा तुम्हारा!

तुम हो तो अच्छा है!

पर नहीं हो तो बहुत बुरा है!

क्योंकि वो बुजुर्ग जो !

परिवार और समाज के!

मेरुदंड हैं!

वो तुमसे कुछ नहीं चाहते!

सिवाय दो पल पास बैठने के!

उनका हाल- चाल पूछने के!

उनके कांपते हाथों को थाम लेने के!

फिर यह मत कहना !

कि सेवा का अवसर नहीं मिला!

क्योंकि वो हमेशा नहीं होंगे!

पर हां!

देकर जाएंगे संस्कार!

बच्चों को!

अपनी छवि उनमें ही छोड़ जाएंगे!

तुम्हारे पास इतना वक्त कहां !a

कि कहानी भी सुना दो बच्चों को!

यह जिम्मेदारी भी वही निभाते हैं!

तुम हो तो अच्छा है!

पर नहीं हो तो बहुत बुरा है!!

  © सौम्या शर्मा

टिप्पणियाँ

  1. अत्यंत संवेदनशील एवं प्रेरणा दायक सृजन 💐💐💐

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