ग़ज़ल ©शिवाँगी सहर

 आ  रहा  याद  जो   था   भुलाया  हुआ,

इस क़दर कुछ  है मुझमें समाया  हुआ।


देखते   हैं   सभी   मेरी  आँखों   को  यूँ,

जिसको हमने था  सबसे बचाया  हुआ।


लाख  पर्दा  करो  तुम  हक़ीक़त  से पर, 

साफ़ दिखता  है जो  है  छिपाया हुआ।


क़त्ल   इंसां  ने   धरती  पे  इतने  किये,

आसमाँ   ख़ून   से   है   नहाया   हुआ।


सोचते  हैं  कि   इक़रार  कर  लें  मगर,

दिल किसी  का बहुत  है सताया हुआ।


कौन  किसका  यहाँ साथ दे अब भला,

हर  कोई है  किसी  का  रुलाया  हुआ।


है  ख़बर हमको  मशगूल थे  तुम कहाँ,

है    बहाना    तुम्हारा   बनाया    हुआ।


चाँद  रातों  से  उल्फत बहुत  थी  सहर,

चाँद   लेकिन   हमारा   पराया   हुआ l


©शिवाँगी  सहर

टिप्पणियाँ

  1. बेहद खूबसूरत बेहद भावपूर्ण गज़ल 💐💐💐

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  2. बेहद खूबसूरत उम्दा ग़ज़ल ❤️👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻

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