दोहावली - जाड़ा ©सरोज गुप्ता
शीत लहर ये कर रही, जीना अब दुश्वार ।
जीव जंतु इंसान पर, घातक किये प्रहार ।।
दुबके दुबके हैं नगर, सिकुड़े सिकुड़े गाँव ।
मिलती राहत धूप में, चुभती है अब छाॅंव ।।
पौधे भी अकड़े पड़े, मचा हुआ कुहराम ।
चंदा तारों के सहित, रवि को हुआ जुकाम ।।
ओढ़े कंबल धुंध की, प्रकृति खड़ी चुपचाप ।
माफ करो हे शीत जी, अब जाओ घर आप ।।
दिन बीते ये फुर्र से, खिंचती जाती रात ।
गिरती आँगन ओस यूँ, जैसे हो बरसात ।।
ठहरो थोड़ा धूप जी, जाड़ा जाये भाग ।
धरा गगन के बीच में, छिड़े बसंती राग ।।
©सरोज गुप्ता
बहुत सुंदर ma'am 🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आपका तुषार 🙏🙏💐💐
हटाएंअत्यंत सुंदर दोहावली🙏🙏
जवाब देंहटाएंस्नेहिल आभार आपका गुंजित 🙏🙏💐💐
हटाएंवाह बहुत खूब 👌👌
जवाब देंहटाएंसादर आभार आपका निशा जी 🙏🙏💐💐
हटाएंबहुत बढिया मैम
जवाब देंहटाएंस्नेहिल धन्यवाद आपका रानी बेटा 🙏🙏💐💐
हटाएंBahut hi badiya dohavali
जवाब देंहटाएंस्नेहिल आभार आपका डियर छोटी 🙏🙏💐💐
हटाएंअति सुंदर एवं सटीक दोहावली 💐💐💐🙏🏼
जवाब देंहटाएंसादर आभार आपका डियर छोटी 🙏🙏💐💐
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअद्भुत दोहावली मैम....🙏
जवाब देंहटाएंस्नेहिल आभार आपका सूर्यम 🙏🙏💐💐
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