गीत-सावन ©संजीव शुक्ला

 फिर आईं तपती रैना दिन पाहन के l

बीते दिन मनभावन झरझर सावन के l


बरसातें तन मन महकाती बीत चलीं, 

पावस की ऋतुऐं मदमाती बीत चलीं l

बीत चले दिन शीतल मधुर फुहारों के, 

रिमझिम रातें रस बरसाती बीत चलीं l

उड़ परदेशी बादल अपने देश चले, 

लौट चले घर झुण्ड साँवरे मेघन के l


व्याकुल विरहन प्यासी धरती की अँखियाँ,

मिलकर पंथ निहारेंगी दोनों सखियाँ l

फिर आशा के ताल तलैया सूख चले, 

फिर मुरझाईं हरियाली खिलतीं बगियाँ l

फिर से कुम्हलाई तुलसी घर आँगन की, 

सूख चले बाड़ी के बिरवा चंदन के l


मोहक रातें, मधुमासी दिन बीत गए , 

पंख लगाए सुंदर पल छिन बीत गए  l

मधुर मिलन की रैना पल भऱ में बीती, 

प्यास जगाकर रिमझिम सावन बीत गए l

फिर से पलकें निश दिन पंथ बुहारेंगी, 

फिर बदरा बरसेंगे प्यासे नैनन के l

©संजीव शुक्ला 'रिक्त'

टिप्पणियाँ

  1. मिलकर पंथ निहारेंगी दोनों सखियाँ....
    अद्भुत भावपूर्ण सृजन 👏👏👏💐💐💐

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  2. अति सुंदर एवं मनमोहक गीत सृजन 💐💐💐🙏🏼🙏🏼🙏🏼

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