वृद्धावस्था ©अनिता सुधीर

 नींव रहे ,

ये सम्मानित बुजुर्ग

मजबूत हैं इनके बनाये दुर्ग

छत्रछाया में जिनके पल रहा  

सुरक्षित आज का नवीन युग..

परिवर्तनशील जगत में 

खंडहर होती इमारतें 

और उम्र के इस पड़ाव में ..

निस्तेज पुतलियां,भूलती बातें

पोपला मुख ,आँखो में नीर 

झलकती व्यथा ,अब करती सवाल है ...

मेरे होने का औचित्य क्या ..

क्या मैं जिंदा हूँ ....

तब स्पर्श की अनुभूति से

अपनों का साथ पाकर

दादा जी

जो जिंदा है बस

वो थके जीवन में  फिर जी उठेंगे ....

वृद्धावस्था अंतिम सीढ़ी  सफर  की

समझें ये पीढ़ी जतन से

जब जीर्ण शीर्ण काया मे

क्लान्त शिथिल हो जाये मन

तब अस्ति से नास्ति

का जीवन  बड़ा कठिन ।

अस्थि मज्जा की काया में

सांसो का जब तक डेरा है

तब तक  जग में अस्ति है

फिर छूटा ये रैन बसेरा है ।"

जो बोया काटोगे वही 

मनन करें 

सम्मान  दे इन्हें

पाया जो प्यार इनसे , 

शतांश भी लौटा सके इन्हें

ये तृप्त हो लेंगे.. 

ये फिर जी उठेंगें ...


©अनिता सुधीर

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