सुर्ख रंग की बहारें ©रेखा खन्ना
सुर्ख रंग की बहारों को क्या ग़म लग गया
क्यूँ इनका पीले पतझड़ से पाला पड़ गया।
नदी की चाल थी बलखाती मदमाती हुई
क्या हुआ कि बनना संकरा नाला पड़ गया।
आसमां में बादलों का रंग शफाक ही देखा
किसके दुख में दुखी हो, रंग काला पड़ गया।
रास्ते की ठोकरों सा नसीब हर पल ही रहा
खंडहर हुए जर्जर नसीब पर जाला पड़ गया।
मोहब्बत की तलब में दिल बेताब था बड़ा
दिल टुकड़े हुआ तो रूह पर छाला पड़ गया।
हकीकत थी कि सच्चाई दिखाती रही बारम्बार
सच को नकार क्यूंँ अक्ल पर ताला पड गया।
कर्ज़ जिंदगी का चुकाना था या साहूकार का
जर्जर हुए बदन के पीछे क्यूंँ लाला पड़ गया।
©रेखा खन्ना
Shukriya Tushar ji 🌹
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत 👏👏👏💐💐
जवाब देंहटाएंShukriya
हटाएंबहुत खूब🙏
जवाब देंहटाएंShukriya
हटाएंबेहद खूबसूरत बेहद गहरे जज़्बात 💐💐
जवाब देंहटाएंWaah bahut sundar ma'am 🙏🙏
जवाब देंहटाएंShukriya
हटाएंबहुत बढ़िया 🌺🌺
जवाब देंहटाएंShukriya apka
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