लाज़मी सा था ©रानी श्री

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फ़कत तन्हा दिलों को आशियाना लाज़मी सा था,

बिना मंज़िल सफ़र से लौट आना लाज़मी सा था।


जवानी थी बुलंदी पर कई अरमाँ मचलते थे,

तज़ुर्बे के लिये तो दिल लगाना लाज़मी सा था।


लगी जो आग दिल में थी बुझा ना हम सके उसको,

जलाती घर अगर तो लौ बुझाना लाज़मी सा था।


कफ़स में रह चुका जो एक अरसा उस परिंदे का,

रिहा हो हाथ में ख़ंज़र उठाना लाज़मी सा था l


ख़ुदा चाहे मुसीबत में हमें बस बेवफ़ाई दे,

वफ़ा फ़िर भी उसी से ही निभाना लाज़मी सा था।


समझ आती नहीं थी हर्फ़ की कोई ज़ुबां उनको,

ज़ुबां खामोशियों की ही सुनाना लाज़मी सा था।


बुरी है शायरी तेरी भरी है दर्द से  'रानी',

खबर फ़िर मौत की अपनी बताना लाज़मी सा था।

©रानी श्री

टिप्पणियाँ

  1. बुरी है शायरी तेरी भरी है दर्द से रानी.... बहुत खूबसूरत गज़ल 💐💐💐❤❤❤

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  2. क्या कमाल ग़ज़ल हुई, वाहहहहहह

    जवाब देंहटाएं
  3. तज़ुर्बे के लिए तो दिल लगाना लाज़मी सा था.....

    वाह्हहहहहहहहहहहहह वाह्हहहहहहहहहहहह

    बेहद खूबसूरत ग़ज़ल🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

    जवाब देंहटाएं

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