ग़ज़ल ©संजीव शुक्ला
रोटियाँ अपनी बेशक़ पकाया करो l
मुल्क सारा मगर मत जलाया करो l
सातरंगी धनक है वतन बेवज़ह..
रंग कर के अलग मत दिखाया करो l
आसमाँ,डोर हों लापता इस तरह....
मत ज़ुबानी पतंगें उड़ाया करो l
नींद खुलती है सबकी कभी ना कभी..
ये हकीकत कभी मत भुलाया करो l
ये उधारी के वादे मुनासिब नहीं...
कुछ चुकाओ नगद कुछ बकाया करो l
ईद अच्छी नहीं पाँच साला हुज़ूर....
बीच में चाँद चेहरा दिखाया करो l
फ़ितरतें चाशनी की ज़ुबाँ की शहद..
'रिक्त' रक्खो बचाकर न जाया करो l
© संजीव शुक्ला
अद्भुत सर👏👏👏
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा सर🙏👏
जवाब देंहटाएंBahut sundar Sirji👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत खूब सर जी 🙏
जवाब देंहटाएंवाहहह, लाजवाब
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सटीक प्रभावशाली गज़ल 💐💐💐💐🙏🏼
जवाब देंहटाएंसटीक, बेहतरीन और बेबाक़ ग़ज़ल सर जी..... वाह्हहहहहहहहहहहहह
जवाब देंहटाएंअप्रतिम सर, अद्भुत 👏👏
जवाब देंहटाएंअद्भुत 👌👌
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल सर 🙏🙏
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