केशवानंदी ©सूर्यम मिश्र

आज घर में चारो ओर बड़ी चहल-पहल थी। सब जगह से मेहमान आ रहे थे। पूरा घर मेहमानों से भर चुका था। घर के एक कोने में कुछ बच्चे बहुत तेज़ शोर करते हुए लुका-छिपी खेल रहे थे। एक तरफ़ कई औरतें बैठ कर ढोलक बजाते हुए प्रसन्नता के गीत गा रही थी। आज मानों पूरा संसार ही उत्सवमय हो चुका था,आज गोपाल काका की सबसे छोटी बेटी "आनंदी" का ब्याह जो था। 


माँ जी घर के अंदर ब्याह की सारी रस्में, पूजा-पाठ करवा रही थी। वो कभी शृंगार दान से सिंदूर लाने के लिए दौड़ती तो कभी दिया जलाने के लिए घी लाने तो कभी गाय के उपलो के आग की ज़रूरत पड़ जाती। पिता जी सभी अभ्यागतों के सत्कार में व्यस्त थे। कभी किसी को पानी पिलाने के लिए मीठा लाने दौड़ते तो कभी किसी का पाँव धुलने को परात ढूंढ़ने लगते तो कभी किसी के लिए तकिये का इंतज़ाम करने लगते। बड़े भैया बाहर हलवाई के कहे अनुसार सामाग्री उपलब्ध करवाते, टेंट की व्यवस्था में देरी पे दाँत भींचते। 


घर में ढोल और शहनाई के बाद आनंदी के सखियों की पायलों की छुन-छुन की आवाज़ गज़ब का वातावरण तैयार कर रही थीं। आनंदी की सखियाँ मधुर गीत गाकर उसे उबटन और हल्दी लगा रही थी। उसकी सखियाँ कभी-कभार बीच में आनंदी को चिढ़ाती तो आनंदी धीरे से मुस्कुराती तो उसका चेहरा शर्म से लाल हो जाता और वो मुँह नीचे कर लेती।


अब आनंदी के नहाने का वक्त हो गया था। सभी सखियों ने मिलकर उसे भलीभाँति नहलाकर उसे स्वेच्छा से कपड़े पहनने और थोड़ी देर आराम करने के लिए अकेला छोड़ दिया। आज सुबह से ही इधर-उधर में लगकर आनंदी थक कर चूर हो चुकी थी। वो थोड़ी देर चुप-चाप आँख बंद करके लेट गई। अभी सोई ही थी कि सपने में उसे उसका प्राणप्यारा दिखा। आज केशव को सपने में देखकर वो बेचारी लजा गई और कपड़े पहनने के लिए उठ खड़ी हुई। 


आनंदी ने आलमारी खोलकर उसमें से वो लाल साड़ी निकाली जो उसे केशव ने दी थी और कहा था कि उन दोनों की शादी वाले दिन आनंदी वही साड़ी पहने। आनंदी ने मुस्कुराते हुए वो साड़ी उठाई और सीने से लगाकर चूम लिया। आनंदी ने साड़ी पहन कर खुद को शीशे में देखा। "तू लाल कपड़े में ऐसी दिखती है जैसे किसी ने लाल गुलाब में आत्मा डाल दी हो" लाल कपड़े में उसे देखकर केशव यही कहता था। वो थोड़ा मुस्कुराई और अनायास ही शर्म के मारे उसका मुँह लाल हो गया। 


फ़िर आनंदी को उस अंगूठी की याद आ गई जो उसने सबसे छिपाकर मंदिर वाले कमरे की ताख पर रख दी थी। वो चुप-चाप दौड़ते हुए वहाँ पहुँची और उसने झट से अंगूठी को दाएँ हाथ की तर्जनी उँगली में पहन लिया। अब उसने फ़िर से हाथ को ध्यान से देखा, "तेरे उँगली में ये अंगूठी ऐसी दिखती है जैसे कमल की पंखुड़ियों पर ओस की बूँद" याद आते ही अबकी बार वो खुद को ना रोंक पाई।


अबकी बार हृदय में कोई बाँध सा टूट गया। एक बार आँसू बहना शुरू हुए, तो बंद ना हो पाए। आनंदी केशव को याद करके बहुत टूट-फूट कर रोने लगी। वो दौड़ते हुए भगवान के पास रखी श्रीरामचरितमानस के पास पहुँची जहाँ उसने केशव की एक छोटी सी फोटो छिपाकर रखी थी। फोटो में केशव का हँसता हुआ चेहरा देखकर आनंदी के हृदय में असीम वेदना उमड़ पड़ी। केशव को गुज़रे पाँच साल हो चले थे, लेकिन आनंदी कभी खुद को उससे दूर ना कर पाई। आज उसका विवाह किसी और से होने वाला था, किंतु उसके मन को ब्याह कर तो केशव कब का लेकर ऐसी दुनिया में चला गया था, जहाँ से बस उसकी चिर स्मृतियाँ ही आनंदी के शरीर तक पहुँच पाती थीं। 


रोते-रोते केशव को याद करते हुए वो जाने किस दुनिया में खो गई कि उसे समय का ज़रा भी ध्यान ना रहा। दरवाज़े पर खट-खटाहट सुनकर वो केशव की यादों से बाहर आई और फ़िर से अपने चेहरे पर एक झूठी हँसी सजा ली और फ़िर से विवाह के लिए तैयार होने लगी..

©सूर्यम मिश्र

टिप्पणियाँ

  1. अत्यंत मार्मिक एवं भावपूर्ण🙏

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  2. मार्मिक लेखन !!
    बहुत बढ़िया!

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  3. अत्यंत मार्मिक एवं भावपूर्ण सृजन 💐💐💐

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