घाट पर(श्मशान घाट) ©विपिन बहार
आग की तो आतिशे थी घाट-पर ।
यूँ दफ़न सब ख्वाहिशें थी घाट-पर ।।
सोचकर भावुक हमारा रग हुआ ।
कौन है जो जिंदगी का ठग हुआ ।।
चल रहे सब रेल की रफ़्तार में...
मोह-माया क्षोभ-काया जग हुआ ।।
अंत होती दिख रही थी लालसा...
जल रही सब साजिशें थी घाट-पर ।।
आग की तो आतिशे थी घाट-पर..
यूँ दफ़न सब ख्वाहिशें थी घाट-पर..
नैन की ये पुतलियाँ अब थक गई ।
बेरहम ये जिंदगी अब पक गई ।।
राख होने को बदन तैयार है..
लकड़ियों में आरजू अब ढक गई ।।
कौन अपना है पराया क्या पता...
दूर सारी बंदिशे थी घाट-पर ।।
आग की तो आतिशे थी घाट- पर ...
यूँ दफ़न सब ख्वाहिशें थी घाट-पर...
दर्द को अपने समेटें मैं चला ।
छोड़कर सब यार भेटें मैं चला ।।
मोल मेरा तुम लगा लो अब यहाँ ...
पाप की गठरी लपेटें मैं चला ।।
कर भला तो हो भला की तर्ज़ पर...
छोड़ दी जो रंजिशें थी घाट पर ।।
आग की तो आतिशे थी घाट पर ...
यूँ दफ़न सब ख्वाहिशें थी घाट पर...
© विपिन "बहार"
बेह्तरीन रचना l 💐
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद सर👏👏
हटाएंवाह वाह 👌👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंआभार आपका👏
हटाएंअद्भुत रचना सर...👏🙏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भाई जी💐
हटाएंवाहहह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मैंम💐
हटाएंWaah Bhaiya....bohot khoob👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार आपका💐
हटाएंसटीक एवं सार्थक सृजन 💐💐
जवाब देंहटाएंजी आभार मैंम💐
हटाएंबहुत उम्दा🙏👏
जवाब देंहटाएंआभार भाई जी💐
हटाएंGazab Bhaiya ji 🙏👌👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भाई जी💐💐
हटाएंWaah बहुत खूब 🤩
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