लिख रही हैं चाँदनी © रेखा खन्ना

 लिख रही हैं चाँदनी 

अंँधेरों की दास्तां नई

आधी रात की खामोशी

आधी रात की बेबसी

कि उभर नहीं सकती

इस जमीं से आसमां तक

है बस फैली हुई।


लिख रही है चाँदनी

लहरों पर खेलते हुए

अपनी इक कहानी कि

कैसे चाँद दूर से देखता है

और उसे आगोश में

भरने को तरसता है

कि क्यूँ वो लहरों की 

मदमस्त दीवानी हुई।


लिख रही हैं चाँदनी

मोहब्बत की एक कहानी 

तेरे हाथों में मेरा हाथ 

देख कर कि कैसे दो दिल

मिल रहें हैं रात के अंधियारे में

लोगों की बस्ती से दूर

समंदर के किनारे और

मोहब्बत कैसे ठंडी बयार

की चाहत हुईं।


लिख रही है चाँदनी

तरसते मन की व्यथा कहीं

कैसे दो नैना खिड़की से

उसे निहारने में लगे हैं

और सोच रहें हैं कि 

क्यूँ चाँद अपनी चाँदनी के

संग संग रहता है और

क्यूँ मैं हरपल तन्हा हूँ और

मुझमें किसी के

साथ की आस है

अब तक बसी हुई।


लिख रही है चाँदनी

किसी की अनकही 

ख्वाहिशों को भी

वो ख्वाहिशें जो रात के 

अंँधेरे में दिल में उभरी तो पर

दिन का उजाला होते ही

किरणों की तपिश से

जल कर राख हुई।


लिख रही है चाँदनी 

जाने कौन सी कहानी 

भागते हुए शहर की और

रात के सन्नाटे की

जहांँ कुछ रस्तों पर 

पसरा है अँधेरा और

कुछ रस्तों पर चमकीली

पीली रौशनी हुई।

     © रेखा खन्ना

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