यह नर्म नाजुक चेहरों की सच्चाई ©परमानन्द भट्ट
हरी भरी नर्म मुलायम दूब
बिल्कुल तुम्हारे
मखमली चेहरे सी नाजुक
कोमल
तुम्हारे पास नहीं है
भदेस अक्खड़पन मेरे
गाँव के बरगद जैसा
तुमने झुकना सीखा है
और मैने टूटना
तुम्हारे इस हरे पने के मुखौटे
के पीछे छिपी है तुम्हारी
समझौता वादी सोच
बिल्कुल मेरे आफिस के
उस चाटुकार बाबू की तरह
जो नहीं पनपते देता
किसी प्रतिभवान
खुद्दार साथी को
ए दूब
तुम कब पननपे देती हो
कोई पौधा अपने आस पास
जमीन के भीतर जड़े
जमा बढ़ती रहती हो
निरन्तर, और छा जाती हो
बिल्कुल उस चाटुकार की
तरह
गाँव में तो हम तुझे खरपतवार
कहते हैं
और उखाड़ फैकते है जड़ों से
मगर शहर नहीं समझ पा
रहा तुम्हारे नर्म मुलायम चेहरे
के नीचे छुपा तुम्हारा सच
© परमानन्द भट्ट
अत्यंत सटीक एवं सार्थक 🙏🙏🌹
जवाब देंहटाएंसुंदर भावपूर्ण रचना सर जी l 💐
जवाब देंहटाएंWaah sir....bohot khoob😊😇🙏👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया, आप सभी का
जवाब देंहटाएंशानदार
जवाब देंहटाएंUmda rachna Sirji 👌👏👌
जवाब देंहटाएंअत्यंत सटीक एवं सार्थक सृजन 💐🙏🏼
जवाब देंहटाएंWahhhhh
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचना सर🙏🙏
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