गीत - मैं चुका हूं हार तुझको ©अंशुमान मिश्र
(1)
है नहीं विश्वास होता, मैं चुका हूं हार तु झको,
आज तक इस तप्त हिय को, मेह-झोंके मिल रहे थे,
आजकल ही सुमन दो, रति-वृक्ष ऊपर खिल रहे थे,
किन्तु फिर कालाग्नि ने बस इक सुमन झुलसा दिया था,
शेष जो, वह पुष्प करता है विलाप पुकार तुझको
है नहीं विश्वास होता, मैं चुका हूं हार तुझको..
(2)
हो रहा आभास है अब, मैं चुका हूं हार तुझको..
पौध है, पर जल नहीं है! तन कहीं पर, मन कहीं है..
रात्रि नीरसता भरी है! श्वास है, जीवन नहीं है..
प्रेम अब दिखता कहां है? हर दिशा में बस धुआं है..
आस की जलती चिताएं, दे रहीं धिक्कार मुझको!
हो रहा आभास है अब, मैं चुका हूं हार तुझको..
(3)
हो चुका विश्वास है अब, मैं चुका हूं हार तुझको!
स्वप्न अगणित ले नयन अब, रात भर जगते नहीं हैं,
कोयलों के गीत भी अब, तनिक प्रिय लगते नहीं हैं,
हर जगह अब क्रंदना है, मर चुकी रति कल्पना है,
नाव भी चलती बनी है, छोड़कर मझधार मुझको,
हो चुका विश्वास है अब, मैं चुका हूं हार तुझको!
- © अंशुमान मिश्र
सुंदर भावपूर्ण रचना l 💐
जवाब देंहटाएंबहुत आभार सर ♥️🙏
हटाएंबहुत-बहुत हृदय स्पर्शी रचना😇😊👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दीदी
हटाएंआज के युवाओं के लिए विशेष रचना मित्र
जवाब देंहटाएंजी बहुत आभार
हटाएंबहुत खूब वाह्ह्ह्ह
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंबहुत ही उम्दा रचना, वाहहहहह🙏👏
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ♥️
हटाएंअति सुंदर एवं भावपूर्ण रचना 💐💐💐
जवाब देंहटाएंआभार दीदी
हटाएंअत्यंत भावपूर्ण अद्भुत रचना 👏👏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सूर्यम
हटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना 👏👏👏🌹🌹
जवाब देंहटाएंआभार दीदी
हटाएंबहुत ही सुंदर मर्मस्पर्शी 👌👌
जवाब देंहटाएंछा गए गुरू 👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना 👍👌
जवाब देंहटाएंआपकी तारीफ में जितने भी शब्द कहे जाए वो भी कम है ।
Umda rachna bhai 👌👌👏
जवाब देंहटाएंBeautiful
जवाब देंहटाएंWaah 👌
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