क्रिकेट का खेल ©गुंजित जैन

 "कुछ भी हो जाये, आज तो पहले मैं ही खेलूंगा" कहते हुए वो ख़ुद से ही बातें कर रहा था। 

दूसरी तरफ़ उसका प्रतिद्वंदी। वैसे तो मित्र, पर खेल में दूसरी टीम का कप्तान, यानि उसका प्रतिद्वंद्वी, बैट घुमाते हुए एक कॉन्फिडेंस के साथ आ रहा था कि बैट मेरा है तो जायज़ सी बात है पहले मैं खेलूंगा। 


न चेहरे पर कोई शिकन, न कोई तनाव। उस उम्र में तो स्कूल में आये नंबर भी खास मायने नहीं रखते, और वैसे भी तब तो सभी के नंबर बढ़िया ही आते हैं। आप के भी बेशक अच्छे ही आये होंगे!! उसके बाद जैसे जैसे बड़े होते जाते हैं तब... ख़ैर! छोड़िये वो सब।


हाँ तो कहाँ थे हम?? खेल पर! हाँ!!

तो बस इन्हीं कश्मकश के बीच वो दोनों मैदान में चले आ रहे थे। एक तरफ़ वो भूरे रंग की अपनी वही पुरानी बारीक चेक वाली शर्ट और एक ढीला निक्कर पहने आ रहा था और दूसरी तरफ़, दूसरी टीम का कप्तान अपनी नारंगी सी टी शर्ट और निक्कर में चला आ रहा था।


उस उम्र में ना ही अक्सर दिखावटी पन होता है, न कोई तुलना और न ही किसी को कपड़ों से कम या ज़्यादा आंका जाता है। 

पर, केवल कपड़ों से। 

बाकि जो ढंग से नहीं खेलता उसे तो तब भी कोई अपनी तरफ़ लेना पसंद नहीं करता था। 


सच सच बताना, आपको कोई अपनी टीम में लेता था या फिर बस बॉल लाने में रह जाते थे?? हाहा।


ओफ़्फ़ो! शायद फिर से विषय पर से भटक रहे हैं।


तो देखते देखते दोनों ही कप्तान मैदान पर पहुंच ही गये थे, और साथ साथ पूरी टीम भी।

वैसे तो उम्र उन सबकी 8 से 10 साल के बीच रही होगी, मगर उनमें जो खेल का जुनून था और उनमें जो वो था... अरे क्या कहते हैं उसको!! हाँ एटीट्यूड। उनमें जो जुनून और एटीट्यूड था उस से उनकी उम्र ज़रा भी नहीं मिलती थी।


ख़ैर! बच्चे मन के सच्चे। 

जो थे, जैसे थे खेल एकदम ईमानदारी से खेलते थे।

वैसे तो फ़िर से विषय से भटकना नहीं चाहता, पर सच कहूं तो आज कल खेलों में ईमानदारी कहाँ रही! शायद कहीं कहीं हो। मगर हर जगह कहाँ!


हाँ, तो बस खेल शुरू होने ही वाला था।

ना ना! खेल नहीं! पहले कौन खेलेगा उसकी बहस। वो बहस बस शुरू होने ही वाली थी। दोनों टीमें मैदान पर तैनात खड़ी थीं। 


सब शुरू होने ही वाला था इतने में...इतने में...

"अरे ये क्या! बारिश!!" उस भीड़ में कहीं से आवाज़ आयी।

"ओफ़्फ़ो! आज फ़िर नहीं" सब एकाएक बोल उठे।


फ़िर... फ़िर क्या था। कल की ही तरह बारिश में फ़िर एक मैच धुल गया। और सब घर की तरफ, गिरते, पड़ते, उठते भागते, कीचड़ में लथपथ पहुंचे। कुछ कुछ बच्चों के मन में एक बात रह गयी जिसने बीच में उन्हें एकाध जगह रोका, कि बारिश में भी खेल का आनंद लेना चाहिए। 

पर कुछ कुछ भीग जाने की डाँट के डर से बिना रुके दौड़े चले गए।


अब बारिश तो है ही ऐसी, बिना चेतावनी आ ही जाती है।


अरे, आप! आप अब तक यहीं हैं? बारिश हो रही है, पकौड़े और चाय के साथ मौसम का आनंद लीजिये।


चलिए चलता हूँ। फ़िर मिलेंगे अगले किसी मैच में, जब बारिश दख़ल न दे।


©गुंजित जैन

टिप्पणियाँ

  1. वाहहह मस्त।
    बचपन में हम भी यही कहते थे बैंट मेरा है तो पहली बारी भी मेरी ही होगी नहीं तो बैट किसी भी नहीं मिलेगा खेलने के लिए। 😁😁

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