निः शर्त प्रेम ©लवी द्विवेदी

 किस हक से शृंगार करूँ मैं, 


माँ की दुविधा, मेरी सुविधा, 

भाई करे रक्षा नजरों से, 

पात हिलोरे लेते कह कह, 

आंसू लेलो इन शजरों से, 

उसपर पीड़ा प्रेम भरी इक, 

तेरी ही इंकार करूँ मैं, 

किस हक से...... 


बहते सुंदर भाव बहन के, 

दिखते देखो द्वार गहन के, 

तात हमारे इच्छाधारी, 

सुख के पूरक दुख संहारी, 

आंसू बहते झरने जैसे, 

तुझको गर मझधार करूँ मैं, 

किस हक से..... 


जुगनू ढूंढे रात सुहानी, 

चाँद से कहता इक कहानी, 

शायद तेरी मेरी होगी, 

प्रेम समर्पण देरी होगी, 

दिखता जो अंगार नही है, 

राख हटा गर वार करूँ मैं, 

किस हक से...... 


बुनकर हुई पृथक रोयी मैं, 

यादें तिरी अलग बोयी मैं, 

फसल उपजती मन के भीतर, 

द्वंदी हिय में लड़ते तीतर, 

दुविधा हार पहन मैं बैठी, 

मन ही मन इजहार करूँ मैं, 

किस हक से शृंगार करूँ मैं। 

© लवी द्विवेदी

टिप्पणियाँ

  1. अति सुंदर एवं भावपूर्ण गीत 👌👌👌👏👏👏

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  2. बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन👌👌👌👌

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  3. वाह्हहहहहहह वाह्हहहहहहहह वाह्हहहहहहहहह 💐💐💐💐💐💐 अद्भुत सृजन

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  4. बहुत-बहुत सुंदर रचना 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻

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  5. तुम्हारी ओर से सबसे बेहतरीन रचना।

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