सँवरने लगे हैं हम ©परमानन्द भट्ट
कुछ तो गुनाह इश्क़ में करने लगे हैं हम
ख़्वाबों से वर्ना आज क्यूँ डरने लगे हैं हम
जब से हुए है दूर वो मेरी निग़ाह से
हर एक लम्हा देखिये मरने लगे हैं हम
तीखे ये ख़ार भी यहाँ लगते हैं फूल से
कैसी हसीन राह गुजरने लगे हैं हम
जकड़ी हैं जब से पाँव में दुनिया ने बेड़ियाँ
तेरी गली को सोच सिहरने लगे हैं हम
मुश्किल है हमको भूलना ओ मेरे दोस्तों
यादों में रंग आपके भरने लगे हैं हम
दुनिया की भीड़ में हमें मत अब तलाशना
आंखों में तेरे देख सँवरने लगे हैं हम
हमको ' परम 'के प्यार ने खुशबू बना दिया
चारों दिशा में आज बिखरने लगे हैं हम
© परमानन्द भट्ट
वाह 👌👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंरूमानियत से भरपूर बेहद खूबसूरत गज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन ग़ज़ल🙏👏
जवाब देंहटाएंआभार आप सभी का
जवाब देंहटाएंAdbhut gazal Sirji 👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत खूबसूरत गजल सर😊👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
जवाब देंहटाएंखूबसूरत ग़ज़ल 🙏
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गजल सर💐
जवाब देंहटाएंवाह्हहहहहहह सर जी ...... लाजवाब ग़ज़ल .... ❤️❤️❤️❤️💐💐💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंबेहतरीन 🙏🏻
जवाब देंहटाएंवाहहहहहह
जवाब देंहटाएंवाह्हहहहहहह
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल 🙏🏼💐
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