लिख देता हूँ ! ©रेखा खन्ना

 कोई ख्याल दिल में कौंध जाए, बस उसे लिख देता हूंँ

तेरा ख्याल सताए तो तुझे ही लिख देता हूँ।


था दिन थोड़ा उलझनों से भरा हुआ

बेबसी में उलझने ही कलम उठा लिख देता हूँ।


दिलो-दिमाग के बीच हर पल एक जंग चलती रहती है

मैं तंग आकर उनकी तकरार ही लिख देता हूँ।


तंग दिल थी मोहब्बत तेरी बहुत ही

मैं तेरी सारी शर्तें खुद को बारम्बार पढ़ाने के लिए लिख देता हूँ।


थी तहरीर मेरी बड़ी ही दिलकश मोहब्बत से भरी

पर दुखी होकर मैं तेरी उस पर जताई रुसवाई ही लिख देता हूँ।


ना मुक्कमल हुई नींद और ना सपनों का सफ़र मेरा

मैं दास्तां में अधूरा ख्वाब ही अक्सर लिख देता हूँ।


शुक्रिया कि तूने नफरतों में संँभाल रखा ताउम्र मुझे

मैं तेरी नफरतों का खतों में शुक्रिया ही लिख देता हूँ।


ज़िंदगी का सफर चल पड़ा था उथले  रास्तों पर

मैं तमाम पत्थरों के चुकाने वाले हिसाब ही लिख देता हूँ।


टूटा था जो वो नाज़ुक दिल था कांँच का बना हुआ

मैं उसके सारे टूटे टुकड़े गिन गिन कर लिख देता हूँ।

         © रेखा खन्ना

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