लाश ©विपिन बहार
देख खाते चील-कौवे राह में उस लाश को ।
खींचते अब जानवर भी छाह में उस लाश को ।।
कौन से मद में सुनो अब जल रही ये भीड़ है ।
मतलबी हाँ मतलबी इस पल रही ये भीड़ है ।।
आँख अपने बंद करके बढ़ रही है शान से...
लाश के ऊपर यहाँ अब चल रही ये भीड़ है ।।
यार कुछ ने तो जहालत की हदें यूँ पार की...
चाहते है कैमरे की चाह में उस लाश को...
देख खाते चील-कौवे राह में उस लाश को..
खींचते अब जानवर भी छाह में उस लाश को..
कौन है जो दर्द अब यूँ बॉटने में लग रहा ।
दर्द की बदरी घनी को छाटने में लग रहा ।।
लोग आपस मे यहाँ तो टाँग ही अब खींचते..
आदमी ही आदमी को काटने में लग रहा ।।
लाश छूना अब यहाँ पर तो बड़ी सी बात है ..
कौन अब भर ले यहाँ पर बाह में उस लाश को..
देख खाते चील-कौवे राह में उस लाश को..
खींचते अब जानवर भी छाह में उस लाश को...
बेसहारो का यहाँ कोई सहारा ही नही ।
भुखमरों का अब यहाँ कोई गुजारा ही नही ।।
बात हमको ये समझ मे अब यहाँ पर आ गई..
आदमी की जात का कोई किनारा ही नही ।।
सोचने के बाद भी हमको नही मालूम है..
कौन लेकर अब चलेगा दाह में उस लाश को..
देख खाते चील -कौवे राह में उस लाश को..
खींचते अब जानवर भी छाह में उस लाश को...
© विपिन"बहार"
बहुत बढ़िया 👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार आपका👏
हटाएंनिःशब्द करता गीत🙏👏
जवाब देंहटाएंआभार भाई जी👏
जवाब देंहटाएंGazab bhaiya ji 🙏🙏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भाई जी👏
हटाएंअत्यंत मर्मस्पर्शी रचना 🙏🙏🙏💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंजी आभार मैंम👏
हटाएंBahut hi khoobsurat
जवाब देंहटाएंजी बेहद शुक्रिया आपका👏
हटाएंअत्यंत संवेदनशील एवं भावपूर्ण गीत सृजन 🙏🏼
जवाब देंहटाएंजी बेहद शुक्रिया आपका मैंम👏
हटाएंअप्रतिम कविवर 👌🙏
जवाब देंहटाएंजी बेहद शुक्रिया आपका👏
हटाएंहर एक पंक्ति सच से भरी हुई 🙏🏻
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बहुत भावपूर्ण ह्रदय स्पर्शी भाई जी 👏👏👏🙏🙏
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया आपका👏
हटाएंबहुत संजीदा गीत भाई जी .....👌👌👌👌🙏🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत आभार भाई जी👏👏
हटाएंगहरे भाव 💐
हटाएंगहन लेखनी
जवाब देंहटाएंआभार आपका💐
हटाएंभाव पूर्ण गीत 💐
जवाब देंहटाएंजी नमन सर💐
हटाएंWahhhh
जवाब देंहटाएंजी बेहद शुक्रिया आपका👏👏
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