गीत - प्रियतम ©संजीव शुक्ला
तुम निकट हो,दृष्टि मेँ हो,मौन किंचित,
प्राण संप्रेषित करें संदेश प्रियतम l
ज्ञान हो आसक्ति मन की चेतना हो,
तुम तृषित चातक हृदय की याचना हो l
तुम अमिट पहचान हो अस्तित्व मेरा,
नेह हो अनवरत मोहक कामना हो l
श्वास, मानस, देह कण-कण मेँ समाहित,
हो सदा गतिमान शोणित बन शिरा मेँ,
मधुर स्पंदन हृदय की अनवरत गति,
भावना, अभिव्यक्ति की विह्वल गिरा मेँ l
शून्य हूँ निस्तेज हूँ निष्प्राण हूँ मैं,
तुम अनश्वर हो अमर प्राणेश प्रियतम ll
एक क्षण यदि दृष्टि प्रिय की दूर जाती,
क्षीण मरुत प्रहार कृश लौ सह न पाती l
श्याम तिमिर वितान का विस्तार नभ मेँ,
तेज प्रभा विहीन हों मन दीप बाती l
ज्योत मलिन प्रकाश धूमिल हो रहा है,
फिर नए उत्साह का संचार कर दे l
फूँक फिर से प्राण बुझती रुग्ण लौ मेँ,
नेह से जगमग हृदय संसार कर दे l
तू विमुख हो यदि निमिष तो शून्य हूँ मैं,
बिन तेरे निर्वात सम परिवेश प्रियतम ll
है हृदय की वेदना का भान तुझको,
विकट अंतरद्वन्द का अनुमान तुझको l
ज़ब चिरंतन प्राण का अनुबंध है फिर,
क्यों दिलाऊँ मैं व्यथा का ध्यान तुझको l
यह तेरी मन रंजनी क्रीड़ा निराली,
ये विमुख उपक्रम अपरिचित स्वर तुम्हारे l
व्यग्र करता चित अपरिचित रूप तेरा,
बन रहा अस्तित्व पर संकट हमारे l
अंक मेँ भर,भूल कर त्रुटियाँ क्षमा कर ,
व्यर्थ व्याकुल प्रियतमा से क्लेश प्रियतम ll
(मौलिक, स्वरचित )
© संजीव शुक्ला 'रिक्त'
बहुत-बहुत सुंदर रचना सर 🙏😊
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हटाएंअद्भुत अनुपम गीत सर🙏👏
जवाब देंहटाएंअत्यंत उत्कृष्ट एवं भावपूर्ण गीत सृजन 🙏🏼
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हटाएंअनुपम गीत 🙏🏻
जवाब देंहटाएंअद्भुत, अत्यंत उत्कृष्ट गीत सृजन भाई 🙏🙏🙏💐💐💐
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हटाएंBahut Sundar Sirji 🙏🙏
जवाब देंहटाएंईश्वर को सर्वस्व अर्पित करता भावपूर्ण गीत सर जी 💐💐💐💐
जवाब देंहटाएं💐💐
हटाएंअप्रतिम सर, अत्यंत अद्भुत 🙏
जवाब देंहटाएंअद्भुत अप्रतिम गीत सर जी नमन 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया वाह्ह
जवाब देंहटाएं💐
हटाएंउत्कृष्ट सृजन सर💐
जवाब देंहटाएं💐
जवाब देंहटाएंWahhhh beautiful 👌👌
जवाब देंहटाएं😊🙏
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