मातृ भाषा ©परमानन्द भट्ट

 तुतलाती बोली में हमने,

जिस भाषा को अपनाया ।

और लोरियां गा कर माँ ने

जिस बोली में बहलाया ।

जिस भाषा में सपने आये

दर्द अधर पर आया है ।

युगों युगों  से जिस भाषा में

गीत मिलन का गाया है ।।

सारे पावन त्योहारों को, 

जिस भाषा से मान मिला ||

पुरखों की गौरव गाथा का, 

जिस भाषा में गान मिला ||

जिस भाषा से मिट्टी वाली, 

महक रोज ही आती है ||

जिस भाषा में मायड़ हमको, 

हालरिया हुलराती है ।|

आँसू ख़ुशियाँ आवेगों को, 

जिस भाषा में शब्द मिले ||

जिसको सुनकर सदा हृदय में, 

रोज सुगंधित सुमन खिले ||

युगों  युगों से जो हम सब की, 

संस्कृतियो की आशा है ||

मातृभूमि, जननी के जैसी, 

वंदित हिंदी  भाषा है ।|


© परमानन्द भट्ट

टिप्पणियाँ

  1. तृप्ति देती हुई, महकती हुई रचना सर ..... अद्भुत अद्भुत 🙏🙏💐👌

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