विमर्श ©नवल किशोर सिंह
#चामर छंद
(15 वर्ण- र ज र ज र)
मेढ़की जुकाम से उदास हो कराहती।
नीर की निवासिनी अधीर हो विलापती।
मेघ रेख देख के विराग को सुजापती।
नेत्र नीर धार ले तड़ाग को सरापती।
लोग क्या न जानते जुकाम के प्रमाद को।
लोभ से सने सभी निरर्थ के विवाद को।
जीव आज मग्न मत्त सावनी फुहार में।
ताप का तड़ाग चाह है कहीं जवार में।
भेक का विलाप देख देख विज्ञ देश को।
ग्राह राह में पड़ा लिए अबूझ वेश को।
श्याम मेघ व्योम में छटा घटा सुदर्श है।
सोखना न पोखरा यही भला विमर्श है।
-© नवल किशोर सिंह
उत्कृष्ट सृजन सर💐
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार💐
जवाब देंहटाएंअत्यंत अद्भुत 🙏🙏
जवाब देंहटाएंअत्यंत उत्कृष्ट सृजन सर जी
जवाब देंहटाएंAdbhut Sirji 👌👏
जवाब देंहटाएंअद्भुत 🙏🏻
जवाब देंहटाएंअत्यंत उत्कृष्ट एवं सटीक चामर छंद सृजन 🙏
जवाब देंहटाएंसटीक सर जी 🙏
जवाब देंहटाएंसच लिखा सर😊🙏
जवाब देंहटाएंसर सर सर सर। नमन आपको👏👏💐💐
जवाब देंहटाएं