ग़ज़ल ©विपिन"बहार"
हाथ अपने अब घुमाकर बैठ जा ।
काम अपने सब बताकर बैठ जा ।।
लोग जल कर ख़ाक हो ही जा रहे ।
आग सारी तू लगाकर बैठ जा ।।
राजशाही ने हमे ये सीख दी ।
दूसरो को यूँ हटाकर बैठ जा ।।
आजकल के लोग देते मशवरा ।
साथ वालो को लड़ाकर बैठ जा ।।
राज करने का सुनो तुम ये जुगत ।
ताज-कुर्सी से उठाकर बैठ जा ।।
यार गूंगो का शहर है चुप रहो
तू गजल अपनी सुनाकर बैठ जा ।।
© विपिन"बहार"
वाह बहुत खूब👏👏👏
जवाब देंहटाएंआभार मैंम💐
हटाएंBahut Sundar bhaiya ji 🙏😀
जवाब देंहटाएंवाहहह भाई जी
जवाब देंहटाएं👌👌👌👌🙏🙏
जवाब देंहटाएंआभार गोपाल जी💐
हटाएंबेहतरीन भाई जी🙏👏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गुंजित जी💐
हटाएंबहुत-बहुत सुंदर रचना भाई ❤️
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार बहना💐
हटाएंधन्यवाद आंकाक्षा जी💐
जवाब देंहटाएंसाथ वालों को लड़ाकर बैठ जा..... वाह्हहहहहहह क्या कहने
जवाब देंहटाएंवाह्ह
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