ग़ज़ल ©विपिन"बहार"

 हाथ अपने अब घुमाकर बैठ जा ।

काम अपने सब बताकर बैठ जा ।।


लोग जल कर ख़ाक हो ही जा रहे ।

आग सारी तू लगाकर बैठ जा ।।


राजशाही ने हमे ये सीख दी ।

दूसरो को यूँ हटाकर बैठ जा ।।


आजकल के लोग देते मशवरा ।

साथ वालो को लड़ाकर बैठ जा ।।


राज करने का सुनो तुम ये जुगत ।

ताज-कुर्सी से उठाकर बैठ जा ।।


यार गूंगो का शहर है चुप रहो

तू गजल अपनी सुनाकर बैठ जा ।।

  ©   विपिन"बहार"

टिप्पणियाँ

  1. बहुत-बहुत सुंदर रचना भाई ❤️

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  2. साथ वालों को लड़ाकर बैठ जा..... वाह्हहहहहहह क्या कहने

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