कवि की कविता ©रजनी सिंह
कभी कभी मन एकदम शांत रहता है न?
कोई उथल पुथल नहीं
जैसे कोई ठहरा हुआ पानी
सारे विचार शून्य हो जाते हैँ जैसे...
एक पल में कई सदियाँ जी ली हों जैसे...
जैसे सुबह की ओस की बूँद...
जो पाँव तले आती है..
और जो चित शांत कर देती है
ठीक वैसे ही.....
जैसे मैं कोई कवि हूँ..
और कल्पना जीवित हो गई है
मेरी हर बात कविता की तरह
हज़ारों अर्थ समेटे है..
या जैसे मैं स्वयं एक कविता हूँ
,किसी संवेदनशील कवि की
जीती जागती, हँसती मुस्कुराती कविता..
उस कवि का मुझे देखना
मेरे हृदय तक उतरती हुई उसकी दृष्टि
जैसे मेरे रोम रोम में
डाल रहा हो वह कोई कल्पना
मैं एक पाषाण सी
मूक निश्चल भावहीन
और वह एक एक शब्द से
मेरा अंग अंग सुंदर शिल्प से
अद्भुत आकार में
मेरा अस्तित्व तराश रहा हो....
© रजनी सिंह 'अमि'
अति सुंदर एवं सरस सृजन 👌👌👌👏👏👏
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन 👌👌👌
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏👏👏👏👏अद्भुत
जवाब देंहटाएंBahut Sundar Didi 😍👌
जवाब देंहटाएंबहुत खूब 👌🏻
जवाब देंहटाएं❤❤❤
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत कविता 💐
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