कविता ©रानी श्री
संगीत की सुमधुर लय में,
तम से उत्पन्न आतुर भय में,
हर प्रकार से समीक्षा में रहूंगी
मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में रहूंगी।
भूत भविष्य के तय में,
हर दृश्य के जय-पराजय में,
जीवन की हर अग्नि परीक्षा में रहूंगी
मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में रहूंगी।
मेरी कविताओं के विषय में,
बहती सरिताओं के आशय में,
तुम्हें प्राप्त होती दीक्षा में रहूंगी
मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में रहूंगी।
पथप्रदर्शक सम नय में,
लोलक सम क्षय-अक्षय में,
हर संभव अन्वीक्षा में रहूंगी
मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में रहूंगी।
लोकप्रिय लोक त्रय में,
दाख-धिय मय में,
तुम्हारी स्वीकृति की संप्रतीक्षा में रहूंगी
मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में रहूंगी।
© रानी श्री
बहुत सुंदर कविता 👌👌👌❤❤
जवाब देंहटाएंअति सुंदर😍😍😍
जवाब देंहटाएंआभार बच्चे
हटाएंबहुत खूब बहना💐💐💐
जवाब देंहटाएंWow
जवाब देंहटाएंVery nice ma'am
आभार आपका
हटाएंअति सुंदर कविता 👌👌👌👏👏👏
जवाब देंहटाएंWaah bahut sundar kavita 👏👏👌
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंवाह्ह्हह्ह्ह्ह 💐
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