चाहत ©परमानन्द भट्ट
चाह फिर से मचल रही होगी
याद रह रह उछल रही होगी
जो उडा़ती है रात की नींदें
कोई दिलक़श ग़ज़ल रही होगी
चाँदनी आज चाँद के सँग में
ख़ूब छत पर टहल रही होगी
आँख में आज कैसी हलचल है
"कोई ताबीर पल रही होगी"
रोज़ तितली को खींच जो लाती
ख़ुशबुओं की फ़सल रही होगी
ओस की बूँद फूल पर क्यूँ है
कोई पीड़ा पिघल रही होगी
ख़्वाब में वो 'परम' की चाहत ले
नीन्द के गाँव चल रही होगी
© परमानन्द भट्ट
बेहद खूबसूरत गज़ल 👌👌👌👏👏👏🙏🙏
जवाब देंहटाएंUmda gazal Sirji 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गज़ल सर जी 👌👌👌
जवाब देंहटाएंकोई दिलकश ग़ज़ल रही होगी ..... बेहतरीन ग़ज़ल ,.....वाह्हहहहहहह सर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन 👌🏼👌🏼👌🏼
जवाब देंहटाएंखूबसूरत ग़ज़ल सर 🙏
जवाब देंहटाएं