श्रृंगार अश्रुओं का ©रेखा खन्ना
अश्रुओं के श्रृंगार से
आंँखों का काजल घुल रहा है
एहसास बन चक्षुओं से निकल कर
बस गालों पर बिखर रहा है
मन की बुझती हुई राख को
भड़काने की कोशिश में
ज़ज्बातों की हवा के
हवाले कर रहा है
अनगिनत एहसासों को
इक काली लकीर में पिरो कर
जग जाहिर कर रहा हैं
कुछ अनकही बातें हैं
जो शब्दों को तलाश रही हैं
और कुछ शब्द है ऐसे जो
आवाज़ के रूंँध जाने की
आस में घुल रहें हैं
मन की व्यथा
दिल ही दिल में
निरंतर गुफ्तगू में लगी हुई है
फुसफुसाते हुए कानों में
ना जाने क्या क्या
अस्पष्ट शब्दों में
बयांँ कर रही है
काला रंग काजल का
आंँखों से निकल कर
दिमाग़ पर कब्जा कर रहा है
अश्रुओं का श्रृंगार
अब सब ख्यालों को
धूमिल कर धीरे-धीरे
खुशियांँ निगल रहा है।
© रेखा खन्ना
अद्वितीय भाव
जवाब देंहटाएंअति उत्तम
Ji shukriya apka ☺️
हटाएंअत्यंत भावपूर्ण सृजन 👌👌👌
जवाब देंहटाएंJi shukriya 😊
हटाएंBahut Sundar rachna ma'am 🙏🙏
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत बेहद भावपूर्ण 👌👌👌👏👏👏
जवाब देंहटाएंJi shukriya apka ☺️
हटाएंसुंदर 👌🏻👌🏻
जवाब देंहटाएंShukriya 😊
हटाएंबहुत खूब 💐
जवाब देंहटाएंShukriya apka ☺️
हटाएंShukriya apka
हटाएंShukriya 😊
जवाब देंहटाएं