प्यारी माँ ©रानी श्री

 

ये चिट्ठी लिख रही हूँ एक खास मकसद से। एक बात जानती हो, तुम्हारी बेटी अब बड़ी हो गई है। अब देखो ना जब से तुम गांव गयी हो तब से पूरा घर मैंने ही तो संभाला है। सुबह देर तक सोने वाली लड़की अब जल्दी उठ जाती है। और पूजा पाठ करके रसोई संभालना और फ़िर सुबह से लेकर शाम तक कक्षाएं करना और फ़िर रात को खाना बनाना वो भी अकेले ही बिन किसी की मदद लिये। पहले पहल तो लगता था कि कैसे होगा मगर इतने दिनों में आदत लग गयी है तो सब हो जाता है। मन नहीं भी हो तो भी सब कर लेती हूँ।


अब तो रोटियाँ भी अच्छी बनाने लगी हूँ। तुम्हें जान कर बहुत खुशी होगी कि तुम्हारी बेटी की जो एक कमी थी अब वो भी पूरी हो गयी। पहले कुछ दिन तो मैं थोड़ी मोटी रोटियाँ बनाती थी मगर अब धीरे धीरे पतली रोटियाँ बनाने लगी हूँ। मोटी रोटी पर एक बेलन और लगेगा अभी तब पतली होंगी। पहले ही दिन से रोटियाँ अच्छी बनने लगी थीं, यही सोच आश्चर्य होता है कि कैसे हो गया। और उनके आकार भी लगभग गोल ही रहते हैं , बाकी नौसिखिए जैसे नहीं कि कहीं का मानचित्र बना दिया। तुम देखोगी तो आश्चर्य में पड़ जाओगी कि बिन सिखाए मैं रोटियाँ कैसे बनाने लगी वो भी गोल गोल फूली हुई रोटियाँ। 


आटा गूंदना भी आता ही है मुझे। तुम डर रही थी ना कि कैसे काम चलेगा मेरा , कैसे खाना बनेगा ? सब्जी दाल चावल बन जाते पर रोटी ही नहीं आती तो पापा और मैं खाएंगे क्या? तुम कहती थी ना कि "सब आ जाए मगर रोटी ही नहीं आएगी बनानी तो बाकी चीज़ों का क्या फायदा? बिन रोटी बाकी की पाक-कला बेकार है इसलिए सीख लो रोटी बनाना। तुमसे कम उमर की लड़कियाँ रोटी बनाने में माहिर हैं" और मैं कहती थी कि "रहने दो उन्हें, पर जब मेरी शादी होगी उससे कुछ दिन पहले सीख लूंगी अभी से सीख लिया तो सारी रोटियाँ तुम मुझसे ही बनवाओगी।" और मेरी ज़िद के आगे तुम्हारे अस्थाई गुस्से को भी झुकना पड़ा। मगर अब देखो हालात ने वो भी सिखा दिया। अब दादी भी तुम्हें ये नहीं कहेगी कि जवान बेटी को रोटी बनाना नहीं सिखाया अब तक, और ना ही तुम्हें कोई शर्मिंदगी झेलनी पड़ेगी मेरी वजह से।


तवे से उतरी फूलती हुई रोटी देख तुम्हारी याद आती है और मज़े की बात ये है कि देर तक खाने वाली रोटियाँ बनती हैं। जानती हो इससे भी बहुत पहले जब रोटियाँ बनाने की कोशिश की थी तब कहीं जली तो कहीं कच्ची रह जाती थी अब तो सुंदर बन जाती है न कच्ची रहती न जलती है। और जानती हो, पहले समय लगता था अब तो धीरे धीरे कम समय में रोटियाँ बनने लगी हैं। बड़ा मज़ा आता है रोटियाँ बनाने में।  


हाँ पराठे अभी भी ज़्यादा वक्त ले लेते हैं मगर जल्द ही उनपर भी हाथ बैठ जाएगा। तुम्हारी देखा देखी सीखकर रोटी बनाने के बाद अग्नि देवता के लिये थोड़ी लोई छोड़ देती हूँ तवे पर और खाने के बाद रोटी के डिब्बे में एक रोटी भी। कभी कभी ज़्यादा रोटी बन जाती है तो सुबह गाय को दे देती हूँ। ये चिट्ठी लिखते वक्त एक और बात याद आई कि तुम पहली रोटी गाय और आख़िरी रोटी कुत्ते के लिये बनाती हो, जो कि मैं नहीं करती पर अब से करूंगी। 


जानती हो कल पूजा करते वक्त थोड़ा हाथ पक गया और बाद में तवा उतारते वक्त भी, लेकिन अब वो मायने नहीं रखता। आदतन सुबह शाम झाड़ू देती हूँ घर में। बस तुम जल्दी से आ जाओ और देखो कि तुम्हारी अल्हड़ बेटी को घर संभालना आ गया। जो शिकायतें थीं तुम्हारी, जो कुछ ताने बाने जैसे ताने थे वो ख़ुद ब ख़ुद धुल जाएंगे जैसे ख़ुद ब ख़ुद मुझे रोटियां बनानी आ गयीं और घर संभालना भी आ गया।


जब गाँव से लौटोगी तब तुम्हें ये रोटियाँ बना के खिलाउंगी। मुझे और मेरी रोटियों को तुम्हारा इंतजार है।


तुम्हारी 

अल्हड़ बेटी जो अब बड़ी हो गयी है


~© रानी श्री

टिप्पणियाँ

  1. अत्यंत भावपूर्ण.. ह्दयस्पर्शी 👌👌👌💐💐

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  2. अत्यंत भावपूर्ण एवं हृदयस्पर्शी पत्र 👌👌👌👏👏👏

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