बँधी कलम ©नवल किशोर सिंह
कलम बँधी है जंजीरों में, कैसे फिर उद्गार लिखें?
सूखी स्याही मसिधानी में, कैसे विषय विचार लिखें?
शब्द बिखरते कंकड़ पत्थर, भावों का सूना आँगन,
तप्त बालुका में पग रखकर, स्वामी की जयकार लिखें।
धूप खिली है सन्नाटे की, छाया में बोली बहरी,
अधरों पर बस मौन सजाकर, प्रीतम का अभिसार लिखें।
मानस-मिट्टी खोद-खोद कर, नागफनी बोते केवल,
पुष्प बबूलों के तब खिलते, उनका ही आभार लिखें।
एक छलावा सोत उमड़ता, दम्भ हृदय धर सरिता का,
उठी उर्मियाँ कंकड़-कृत जो, उनको कैसे ज्वार लिखें?
-©नवल किशोर सिंह
हार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंअद्भुत अप्रतिम सृजन सर जी 👌👌👌
जवाब देंहटाएंशुरू से अंत तक...उत्कृष्ट 👏👏👏💐💐💐
अत्यंत उत्कृष्ट एवं ओजपूर्ण सृजन 👌👌👌👏👏👏🙏
जवाब देंहटाएंAmazing Sirji 👌👌
जवाब देंहटाएंअनुपम ❤️👌🏼👌🏼👌🏼
जवाब देंहटाएं👌👌👏👏
जवाब देंहटाएंवाह्ह्हह्ह्ह्ह 🙏
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