द्रौपदी स्वयंवर ©संजीव शुक्ला
पांचाल भूप का संदेशा आया था l
सम्पूर्ण राज्य भऱ में उत्सव छाया था l
शृंगार साज नगरी का घर-घर जगमग,
सज राज भवन का कण-कण हर्षाया था l
आयोजित किया द्रुपद ने भव्य स्वयंवर,
दे राज सुता को वर चुनाव का अवसर l
सब भांति रूप गुण शील राशि कन्या वह,
थी द्रुपद अजिर का जगमग दिव्य दिवाकर l
आमंत्रित थे युवराज, भूप बलशाली,
प्रत्येक हृदय का आकर्षण पांचाली l
वह सुकृत कंठ है कौन विशाल सभा में.....
वरमाल शुशोभित होगी जहाँ निराली l
प्रति दिशा मनोहर मंगलमय कोलाहल,
निर्मित था अद्भुत लक्ष्य स्वयंवर स्थल l
वृत मार्ग त्वरित गतिमान मत्स्य की आकृति,
झष बिम्ब प्रदर्शित पात्र मध्य संचित जल l
था नृप का यह आदेश, सुनें सब धनुधर,
सब वीर उपस्थित लक्ष्य भेद को तत्पर l
जो शायक भेदे मीन नेत्र लख जल में,
वह होगा यज्ञ सुता पांचाली का वर l
दुर्लभ असाध्य वह लक्ष्य भेद ना पाए,
असमर्थ वीर, रण कौशल काम न आए l
सब देश-देश से आए अतुलित योधा,
बैठे थक कर सब राजा शीश झुकाए l
चिंतित पांचाल नरेश सकोप उचारे,
धिक् है युवराज, नरेश धनुर्धर सारे l
है शेष धनुषधारी धरनी पर कोई,
झष नेत्र साध कर लक्ष्य, बाण जो मारे l
अति कटुक वचन सुन कर्ण उठे क्रोधित तन,
जा पहुंचे यंत्र निकट तब साध शरासन l
मधुसूदन सहमति पा बोली पंचाली,
यह शूद्र पुत्र के हेतु नहीं आयोजन l
दर्शक दीर्घा में पांचो पांडव नंदन,
धर विप्र वेश थे विद्यमान दर्शक बन l
धर मौन देखते पार्थ स्वयंवर लीला,
सहदेव, यधिष्ठिर,भीम, नकुल शशि आनन l
तकि द्रुपद, द्रौपदी व्यग्र स्वयंवर स्थल,
तब उठे पार्थ जन जन में मचा कोलाहल l
यह संशय था सबही के हृदय समाया,
क्या लक्ष्य भेद कर पायेगा द्विज निर्बल l
पा ज्येष्ठ भ्रात का मूक नेह अनुशासन,
बढ़ चले पार्थ कर मधुसूदन का सुमिरन l
की घोर धनुष टंकार चढ़ा प्रत्यन्चा,
क्षण भऱ में भेदा लक्ष्य हुए विस्मित जन l
हर्षित मुस्काती हृदय रूपसी बाला,
बढ़ चली संग सखि लज़्ज़ित नैन विशाला l
तकि यज्ञ सुता की दशा श्याम मुस्काए,
मन मुदित द्रौपदी पहनाई वरमाला l
पंचाली को ले संग चले निज धामा,
अनुपम अद्भुत छवि अतुलित रूप ललामा l
पाँचों पांडव के बीच सोह पांचाली,
ज्यों स्वर्ण शिलाओं मध्य चली शशि भामा l
सह द्रुपद सुता पांडव माता ढिग आए,
माँ आज भीख हम रत्न अमोलक पाए l
माँ कुंती ने आदेश दिया बिन देखे,
लो बाँट परस्पर, जो भिक्षा में लाए l
हो किंकर्तव्य विमूढ़ रहे सब छण भऱ,
आ खड़ा धर्मसंकट अति विकट भयंकर l
सब हो अवाक् तकते थे मुख माता का,
तब तक आ पहुंचे मुसकाते लीलाधर l
बोले गिरिधर मम् अतिप्रिय तुम बहनों में,
है प्रश्न निरर्थक क्यों कातर नैनों में,
यह घटना क्रम है मात्र नियति की लीला,
रस सरिता फूट चली प्रभु के बैनों में l
मैं इस रहस्य का भेद छुपा बतलाऊँ,
तुम भूल चुकी जो तुमको ध्यान दिलाऊँ l
तप कर तुमने शिव से यह वर माँगा था,
शिव की महिमा तुमको स्मरण कराऊँ l
कालांतर में तुमने तप घोर किया था,
होकर प्रसन्न शिव ने वरदान दिया था l
गंगाधर बोले वर माँगो पांचाली,
त्रैलोकी से दुर्लभ वर माँग लिया था l
वर चाहूँ ऐसा मैं प्रभु नाथ कपाली,
हो धर्मरूप अवतार अतुल बलशाली
हो सहनशील, धरती पर सबसे सुंदर,
हो श्रेष्ठ धनुर्धर शोभा अमित निराली l
सुन शिव शंकर कह एवमस्तु मुस्काए,
जो चाहा तुमने सब इच्छित वर पाए l
पाँचों गुण सम्भव किन्तु न एक पुरुष में,
होगा वर पूरन कह कर शंभु सिधाए l
है धर्मरूप अवतार धर्म धरती पर,
बलशाली कोई नहीँ भीम से बढ़कर l
सहदेव सरिस नहिं शील,नकुल सम सुंदर,
नहिं पार्थ समान जगत में अन्य धनुर्धर l
सुन मनमोहन के वचन सभी हर्षाए,
प्रारब्ध मान कर गृह प्रवेश करवाए l
यह गूढ़ कथा है रोचक यज्ञ सुता की,
पांचो पांडव पांचाली पति कहलाए l
©संजीव शुक्ला 'रिक्त'
Adbhut adutye Sirji 🙏🙏
जवाब देंहटाएंशुक्रिया तुषार जी 💐
हटाएंPanchali ke upar adbhut rachna 👌👌
जवाब देंहटाएंआभार 🙏
हटाएंउत्कृष्ट 🙏🙏नमन
जवाब देंहटाएंअत्यंत उत्कृष्ट एवं ओजपूर्ण सृजन 👌👌👌👏👏👏🙏
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट 👌🏼👌🏼👌🏼👌🏼
जवाब देंहटाएंस्नेहिल आभार 😊💐
हटाएंअद्भुत अद्भुत ! 🙏🏻🙏🏻👌👌
जवाब देंहटाएंस्नेहिल आभार 😊💐
हटाएंबेहद खूबसूरत 👌👌
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