आत्मदर्शन ©रेखा खन्ना

झांँकती हूँ कभी कभी खुद के अंदर भी मैं।

पर समझ नहीं पाती हूंँ क्यूंँ कहीं कहीं से गुम हूंँ मैं।

दो परछाइयांँ दिखती हैं अक्सर

इक सफेद शफाक उजली किरण सी

दूजी थोड़ी बुझी-बुझी और और निराशाओं में लिपटी हुई।


सोचती हूंँ मैं क्यूंँ दो रंग दिखते हैं खुद के ही अंदर

इक खुश क्यूंँ है और दूजी मुरझाईं सी क्यूंँ है।

कहीं तो बहुत शांँत दिखती हूंँ और कहीं से बहुत 

उथली-पुथली हूंँ।


ज़ज्बातों की खदान मेरे अंदर, ना जाने किन लहरों से भरी हूंँ।

ऊपर से सदैव खुश दिखने वाली क्यूंँ अंँदर से दुखी दिखती हूंँ।

हांँ कहीं कहीं से खुद को जिंदा तो कहीं से मरता हुआ देखती हूंँ।

विश्वास जो कर लेती थी किसी पर भी आसानी से

आज वही विश्वास मेरे अंँदर मरा पड़ा दिखता हैं।


ख्वाबों से नहीं कोई मेरा नाता, हकीकत में जीती हूंँ।

पर हांँ बहुत से ख्वाबों की लाशें मेरे अंँदर दफन दिखती हैं।

कुछ ख्वाब अब भी आखिरी सांँसें लेते दिखते हैं।

जिन पर मैं खुद ही और भी मिट्टी डालती दिखती हूंँ।


नहीं सिर्फ अच्छाइयों का ही पुतला नहीं हूंँ।

थोड़ा द्वेष भी मन में दिखता हैं।

उनके लिए जिन्हें कोई कद्र नहीं इंँसान की

जो इंँसान को क्यूंँ इंँसान ही नहीं समझते हैं।


गुस्सा भी हैं मन में बहुत, हर पल फिर भी होंठों पर मुस्कान रखती हूं।

दिल में झांँकू तो सिर्फ राख दिखती हैं और दिखती हैं

कुछ चिंगारियांँ जो किसी इक खास को जलाने को तत्पर रहती है।


अक्सर इक अनजान के दुःख को सुनकर भी दुखी हो जाती हूंँ।

पर हांँ हर समय बस दुआ मांँगने का पुतला भी नहीं हूंँ।

हैं कुछ ऐसे भी लोग जिनके लिए मन में नफ़रत रखती हूंँ।

ये नफ़रत मुझे उनके लिए कुछ अच्छा नहीं सोचने देती हैं।

लगता हैं ऐसे लोग मर ही जाएंँ तो ही अच्छा है जिनके लिए किसी की खुशियांँ रास नहीं आती या वो जो किसी की भी जिंदगी बर्बाद करने में एक मिनट की भी देर नहीं लगाते हैं।


हांँ मिली-जुली हूंँ मैं थोड़ी अच्छी और थोड़ी बुरी भी

पर खुद्दार हूंँ मैं कि जो मेरा नहीं उसे कभी पाने की कोशिश नहीं करती हूंँ।

मुझे मरना पसंँद हैं पर किसी के पैरों पर गिरना मंँजूर नहीं 

आत्मसम्मान से भरी हूंँ मैं।

           © रेखा खन्ना

टिप्पणियाँ

  1. अत्यंत भावपूर्ण एवं हृदयस्पर्शी 👌👌👌👏👏👏🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहद खूबसूरत रचना 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻😊❤️

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खूब विचार आपके 👌👌👍

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कविता- ग़म तेरे आने का ©सम्प्रीति

ग़ज़ल ©अंजलि

ग़ज़ल ©गुंजित जैन

पञ्च-चामर छंद- श्रमिक ©संजीव शुक्ला 'रिक्त'