मुस्कान ©परमानन्द भट्ट

 लाख छुपाया मुस्कानों में, 

अपने दिल का दर्द मगर यह

आँख निगोड़ी तुझे देखकर, 

आज अचानक भर आई  है |


जिस दिन से तुम छोड़ गये थे

जीवन पथ पर मुझे अकेला |

सूना सूना सा लगता था

मुझको इस दुनिया का मेला |

यूँ तो पथ पर फूल सजाकर

मौसम ने मुझको ललचाया |

कोकिल ने भी गीत मिलन का

द्वारे आकर खूब सुनाया |

 मगर मुझे तो पतझड़ वाली

वह सूखी डाली भाती थी |

याद तुम्हारी मन प्राणों को

रात रात भर अकुलाती थी |


 तुम आये तो मन आंगन में

नव आशा की जोत जलाने |

एक किरण मेरी आँखों में

हँसकर आज उतर आई है |


 © परमानन्द भट्ट

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना सर 👌👌💐💐

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  2. अति सुंदर एवं भावपूर्ण पंक्तियाँ 👌👌👌👏👏👏🙏

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