गज़ल ©रानी श्री

 किसी से इश्क़ का इल्ज़ाम लेकर ना बुलाना तुम,

मुहब्बत का नया आयाम लेकर ना बुलाना तुम।


नशा-ए-जाम में खोकर,कहीं फ़िर होश आने तक,

असर जो ना करे वो जाम लेकर ना बुलाना तुम।


कलम से गर उतरने को ग़ज़ल कोई मना कर दे,

कहीं से भी गज़ल फ़िर आम लेकर ना बुलाना तुम।


कुरेदे ज़ख़्म पर मरहम लगे या बाम इस दिल पर,

भरे जिसमें नमक वो बाम लेकर ना बुलाना तुम।


घिसे हैं हर्फ़ के जज़्बात हाथों से लिखे जिस पर,

कि गैरों से वही पैगाम लेकर ना बुलाना तुम।

 

अगर ख़ुद का समय लेकर मिलन को मान जाओ तो

उधारी के समय की शाम लेकर ना बुलाना तुम।


नज़र के लफ्ज़ कहते हैं ठहर जा तू अभी 'रानी',

कदम जो ये बढ़े तो नाम लेकर ना बुलाना तुम।

     © रानी श्री

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