तन्हाई ©दीप्ति सिंह
ज़िंदगी आज हमें जाने कहाँ लाई है
हर तरफ़ दर्द है ख़ामोशी है तन्हाई है
अजनबी शाम है अंजान सवेरा भी है
राह में भी तो उदासी की ही परछाई है
हमनें दामन को सजाया था सितारों से भी
आग दामन में सितारों नें ही लगवाई है
हमको उम्मीद की चाहत है न जाने कब से
बस ये उम्मीद हमें लेके यहाँ आई है
जल रही है जो ये दीया तो उजाला होगा
अश्क़ उम्मीद की शम्मा न बुझा पाई है
©दीप्ति सिंह "दीया"
बहुत सुंदर 💐👌
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत शुक्रिया आपका तुषार 😊💐💐
हटाएंBahut sundar 👌👏
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद आपका 🙏😊💐
हटाएंBehad khoobsurat ghazal my dear sister 👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंतहे-दिल से शुक्रिया आपका दी 🙏😊💐💐
हटाएंबहुत खूबसूरत ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंअतिशय आभार आपका आदरणीय 🙏😊💐💐
हटाएंबहुत-बहुत शुक्रिया आपका गुंजित 😊💐
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर ग़ज़ल 👏🏻👏🏻👌👌
जवाब देंहटाएंतहे-दिल से शुक्रिया आपका डियर 😊🙏💐💐
हटाएंबहुत सुंदर 👏👏
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत शुक्रिया आपका 🙏😊💐💐💐💐
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