विद्रोह ©परमानन्द भट्ट
शासन व्यवस्था के प्रति विद्रोह
शिक्षा की अवस्था के प्रति विद्रोह
कभी कुरीति के प्रति विद्रोह
कभी गलत नीति के प्रति विद्रोह
विद्रोह मानव के मन में
सनातन काल से बसता आया है
भूख, अभाव, शोषण व परम्पराओं
के प्रति विद्रोह से होता है
नई व्यवस्था के बीज का रोपण
कभी गुलामी की जंजीर काटने के लिए
कभी असमानता कीखाई को पाटने के लिए
बहुत से कारण है विद्रोह के
मगर आदमी जब विद्रोह करता है
अपने भीतर कुण्डली मार
बैठे हर विकार से
उसका यह विद्रोह ही
सामुहिक विरोध बन
चुनौती देता है
सड़ी गली धार्मिक मान्यताओं को
तब धरती पर नये धर्म का पौधा
प्रस्फुटित होता है
वह कभी बुद्ध, महावीर
ईसा और मोहम्मद
के रूप में
प्रकट होता है
तो कभी कबीर, मंसूर या
दयानंद के रूप में
सही अर्थों यह विद्रोह ही
शताब्दियों तक धरती
पर
मनुष्यता को कायम रखते हैं
© परमानन्द भट्ट
🙏🙏🙏🙏👏👏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गुँजल जी
जवाब देंहटाएंसटीक एवं सार्थक सृजन 👌👌👌👏👏👏🙏
जवाब देंहटाएंसटीक एवं सार्थक रचना सर 👌👌💐💐
जवाब देंहटाएंAmazing Sirji 🙏🙏
जवाब देंहटाएं👏👌👌🙏
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना 🙏
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