तन्हाई ©सरोज गुप्ता

 1222  1222  1222  1222


कभी तन्हाइयों में इस कदर आया नहीं करते ।

अगर आ ही गये हो तो पलट जाया नहीं करते ।। 


ये उठती सी निगाहों को सनम दीदार हो जाये । 

किसी चिलमन के कोने से कभी साया नहीं करते ।। 


फ़लक तक फैले चाहत की समन्दर सी ये गहराई । 

किसी दीवाने अपने ही को अज़माया नहीं करते ।। 


जो लमहें चंद हैं अपने के आओ गुफ़्तगू कर लें । 

उमर को ऐसे शरमा कर के अब ज़ाया नहीं करते ।। 


मुक़म्मल ज़िन्दगी कर लें बिता के तेरे बाहों में । 

अजी मसरूफ़ियत के मर्सिये गाया नहीं करते ।।

©सरोज गुप्ता

टिप्पणियाँ

  1. बेहद खूबसूरत बेहद रूमानी गज़ल 👌👌👌👏👏👏🙏

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  2. उत्तर
    1. तहेदिल से बेहद शुक्रिया आपका निशा जी 🙏🙏💐💐

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