तुम ©प्रशान्त
बहरे मज़ारिअ मुसम्मन मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़
मुख़न्नक मक़्सूर
मफ़ऊलु फ़ाइलातुन मफ़ऊलु फ़ाइलातुन
221 2122 221 2122
मुश्किल सवाल हूं मैं , हाज़िर जवाब हो तुम l
तुमको गुलाब क्या दूँ, ख़ुद ही गुलाब हो तुम ll
मदहोशियां बढ़ातीं हर शाम दो निगाहें.....
मदमस्त मैकदे की महंगी शराब हो तुम ll
हो दर्द भी, दवा भी, तुम मर्ज़ भी, शिफ़ा भी...
हर ज़ख्म जो छिपा दे ऐसा नक़ाब हो तुम ll
चैन-ओ-अमन हमारे दिल का चुरा लिया है..
फिर मुस्कुरा रही हो कितनी ख़राब हो तुम ll
हर चीज़ कैद करती ये गुफ्तगू तुम्हारी....
आज़ाद हसरतों का इक इंकलाब हो तुम ll
सारा जहान जिसकी तारीफ़ कर रहा है....
कोई 'ग़ज़ल' नहीं है, बस बेहिसाब हो तुम ll
©प्रशान्त 'ग़ज़ल'
उम्दा भाई जी💐💐💐
जवाब देंहटाएंआभार तुषार जी.....❤️❤️❤️
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर👌
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल 👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रूमानी गज़ल 👌👌👌👏👏👏🙏
जवाब देंहटाएंAmazing Sirji 👌👏
जवाब देंहटाएंवाह 😍😍
जवाब देंहटाएंकमाल 👌🏼❤️
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