विरहन ©नवल किशोर सिंह
कुटिया कुहके मृदुहास बिना।
घर आँगन साजन भास बिना।
लतिका अवलंब बिना उजड़ी,
कलिका न खिली मधुमास बिना।
पतझार लिए अँकवार सखी।
उर साल रहा नित खार सखी।
खल सावन दूर डकार करे,
मृगलोचन में जलधार सखी।
मन अंचल सिंचित नीर कहाँ।
बिन बादल पल को धीर कहाँ।
सुख पास सुहास घटा बनके,
पिय पावस हरता पीर कहाँ।
रस रास विलास रसे न पिया।
मधु मोद मरंद लसे न पिया।
सखि साज कमाच कुलाँच नहीं,
भँवरा भर भाव हँसे न पिया।
-©नवल किशोर सिंह
लाजवाब 👌👌
जवाब देंहटाएंआभार🙏
जवाब देंहटाएंअद्भुत
जवाब देंहटाएंअद्भुत अतुल्य सृजन 👌👌👌👏👏👏🙏
जवाब देंहटाएंजबरदस्त 💐
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