गीतिका ©अनिता सुधीर
1222,1222 1222 1222
रखें उत्तम गुणों को जो,रहें सबके विचारों में।
मनुजता श्रेष्ठतम उनकी,चमकते वो हज़ारों में।
सभी लिखते किताबें अब,बचे पाठक नहीं कोई।
पढ़ेगा कौन फिर इनको,पड़ी होंगी किनारों में।।
हवा की बढ़ रही हलचल,समय आया प्रलयकारी
नहीं जो वक़्त पर चेते, उन्हें गिन लो गँवारों में।।
लगी है भूख दौलत की,हवा को बेचते अब जो
सबक तब धूर्त लेंगे जब, लगेंगे वो कतारों में ।।
अटल जो सत्य था जग का,भयावह इस तरह होगा
गहनता से इसे सोचें, मनुज मन क्यों विकारों में।।
ठहरता जा रहा जीवन,सवेरा अब नया निकले
दुबारा हो वही रंगत,महक हो फिर बहारों में।।
@अनिता सुधीर आख्या
Bahut Bahut Sundar ma'am 😍😍
जवाब देंहटाएंउम्दा👌👌
जवाब देंहटाएंसटीक सार्थक सृजन 👌👌👌👏👏👏🙏
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