ध्वनि ©आशीष हरीराम नेमा

 सृजन कर्ता  ने किया, 

जब सृष्टि निर्माण ...

क्या मनुज क्या कीट- पक्षी ,

डाले सबमें प्राण....


कर जीवंत सकल सृष्टि को,

ब्रम्हा करें विचार ..

व्याप्त रहा यूं मौन सदा, 

तो कैसे हो संचार ?.....


मूक सृष्टि के संचालन में ,

होगी बड़ी कठिनाई ...

सदा मौन रहना मृत्यु सम, 

यह कैसी दुविधा आई...


ब्रह्म कहें शारदे! सुनो ,

अब तुम ही एक सहाय ...

दूर करो दुविधा मेरी, 

सोचो कोई उपाय ....


ज्ञान स्त्रोत जगजननी ने, 

हित सोचा नभ-जल-अवनि का ....

तब वीणा मधुर बजाकर माँ ने, 

उद्भव कर दिया "ध्वनि" का...


शब्द बने सारथी ध्वनि के , 

दूर हुई चिंता ब्रम्हा की ...

झूम उठी सृष्टि ध्वनि पाकर ,

कृपा हुई जब शारदा माँ की ...


ध्वनि हुई कल-कल नदियों में , 

चहक उठे खगकुल सारे... 

सुनकर के ध्वनि एक-दूजे की , 

मानव भी मुख से उच्चारे...


सरगम बन गीतों की ध्वनि ,

अंतर्मन को भी प्रसन्न करें ....

छूकर धरती बर्षा की बूँदे , 

मनमोहक ध्वनि उत्पन्न करें....


नभ में छाऐ काले बादल,  

जब आपस में टकरावें....

भीषण ध्वनि विस्तारित कर , 

मन में भय को उपजावें.....


शांत जान सारी प्रकृति को , 

मंद पवन भी शोर करे ...

मधुर ध्वनि कोयल की देखो , 

जनमन भाव-विभोर करे...


किंतु ध्वनि भी एक सीमा तक, 

जन-मन को मोहित करती है ...

अति से भी अति हो जाने पर ,

परिवेश को दूषित करती है ...

 

ध्वनि का विस्तार करें कितना?,

निर्भर करता उपभोगी पर ...

औषधि-जहर दोनों का कार्य , 

ध्वनि करे एक रोगी पर ....


ध्वनि को ध्वनि ही रहने दे हम , 

इसे बनने दें कभी शोर नहीं ...

गर ध्वनि प्रदूषण बढ़ता है  , 

तो दोषी हम कोई और नहीं......

                                  ✒ आशीष हरीराम नेमा


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