दिल की सीढ़ी ©रेखा खन्ना

 कल रात बस यूं ही ख्याल आया था कि क्या दिल में भी कोई सीढ़ी होती हैं जिससे उतर कर कोई दिल की गहराइयों में बस जाता हैं। अपने कदमों के पक्के निशान दिल की जमीं पर उकेर देता हैं। मोहब्बत का एहसास तो होता हैं पर क्यूं दिल की कश्मकश खत्म होने का नाम ही नहीं लेती हैं कि ये मोहब्बत ही यां सिर्फ एक वहम कि कोई तो उतरा हैं दिल में।



         " दिल की सीढ़ी "


क्या और कैसे हुआ मुझे कुछ पता ही नहीं चला

वो दिल में उतरा कैसे, उसे दिल की सीढ़ी का पता कैसे था चला

इक इक सीढ़ी संभल कर उतरा और गहराई तक पहुंच गया।


जाने किसने उसको मेरे दिल का पता था दिया 

पर मेरे दिल में गहराई तक जाने वाली हर इक सीढ़ी थी कमजोर 

हल्की सी आहट से भी जो हो जाती शायद चकनाचूर।


फिर कैसे उसका भार सहन  कर लिया

क्यूं दिल की तह तक पहुंचा दिया

धीरे धीरे घर बनाया और फिर मोहब्बत का अंकुर उगा दिया।


पर मेरा दिल तो सदियों से था बंजर फिर कैसे उसने उपजाऊ बना दिया

कहां से लाया एहसासों का पानी जिसने जमीं में नमी को बढ़ा दिया।


मोहब्बत, मोहब्बत के इक नए रंग से मुझे सराबोर किया

पर वो क्यूं दिल में ही है रहता, क्यूं रूबरू नहीं होता।


अक्सर ख्वाबों में दिखता है पर हाथ बढ़ाओं तो गुम हो जाता हैं

गर हैं मोहब्बत तो क्यूं कभी सामने ही नहीं आता।


क्यूं दिल की धड़कन में धक धक है करता

क्या सच में इसे ही मोहब्बत कहते हैं

क्यूं मेरे सवालों में मुझे ही हैं उलझाता।


क्यूं इक बार गले लगाकर अपनी मौजूदगी का एहसास कभी नहीं कराता

क्या मुझे यूं उलझनों में तड़पता देख उसे सुकून है मिलता।


यां फिर ये सिर्फ मेरा वहम है कि कोई मेरे दिल की सीढ़ियों से दिल में है उतरा

क्यूं कोई हलचल महसूस नहीं होती।


क्यूं कदमों की उसके मुझे कोई आहट नहीं मिलती

हां शायद वहम ही है कि कोई दिल में है उतरा

हां कभी कभी वाकई में लगता हैं कि शायद ये  वहम ही हैं कि कोई दिल में उतरा हैं।


पर जब दिल में झांक कर देखती हूं तो अक्सर नर्म पड़ी जमीं पर किसी के कदमों के निशान दिखते हैं

पर वो नहीं दिखाई देता जिसके ये निशान हैं

ना जाने कहां छिप जाता‌ है।


क्यूं खुद को यूं मुझसे छिपा कर रखना चाहता है

क्यूं मेरे बुलाने पर भी कोई आवाज़ नहीं देता

कभी कभी लगता हैं जैसे उसे किसी खास वक्त का इंतजार है ।


जब वो वक्त आएगा तब ही रूबरू होगा और गले लगाकर अपनी मौजूदगी का एहसास कराएगा

तब तक वो दिल में ढेरा डाले यूं ही चुपचाप पड़ा रहेगा और मुझे अनगिनत ‌सवालों में उलझा कर रखेगा।


कभी कभी लगता हैं जैसे ख्वाब में भी मैं ख्वाब नहीं देखती हूं बस जवाबों में उसे ढूंढने की कोशिश में ही लगी रहती हूं

ये सच हैं कि मुझे बेइंतहा मोहब्बत हो गई है उस शख्स से जो बिन पूछे ही मेरी जिंदगी में शामिल हो गया हैं।


हां दिल में उसके निशान अक्सर नजर आते हैं

कभी जब मन बिल्कुल शांत होता हैं तो ऐसा लगता हैं जैसे वो मुझे बुला रहा हैं।


मुझे कुछ ‌कहने की कोशिश कर रहा हैं

शायद अपने दिल की बात कहना चाहता हैं

बस यही आवाज़ आते ही मेरा दिल बैचेन हो उठता हैं और वो शख्स ना जाने क्यूं बिल्कुल शांत हो जाता हैं ।


फिर कितनी भी कोशिश कर लूं पर कोई आवाज़ नहीं सुनाई देती हैं

मैं फिर थोड़ी सी मुरझा कर रूआंसी सी हो जाती हूं।


हां मुझे मोहब्बत है उससे पर वो‌ क्यूं नहीं ‌इजहार करता हैं यां फिर उसे मुझसे मोहब्बत ही नहीं है

सोचती हूं अक्सर क्या उसके दिल के भीतर जाने के लिए भी कोई सीढ़ी है।


गर हैं तो मुझे नजर क्यूं नहीं आती वो सीढ़ी जिसके जरिए मैं भी उसके दिल में उतर सकूं

क्यूं उसने उस सीढ़ी को मुझसे छुपाकर रखा हैं क्या वो वाकई में नहीं चाहता कि मैं उसके दिल की तह तक पहुंचूं।


क्या उसे मोहब्बत नहीं है मुझसे, गर है तो क्यूं यूं दूर दूर रहता हैं

यां फिर इस सीढ़ी को उसने किसी और के लिए संभाल कर रखा हैं।


हां शायद ऐसा ही होगा नहीं तो कोई मतलब ही नहीं बनता यूं दूर रहने का

ये तो जरूरी नहीं है ना कि जितनी मुझे मोहब्बत है उससे तो उसे भी मुझसे ही मोहब्बत होगी।


शायद वहम ये नहीं है कि मुझे मोहब्बत नहीं है क्योंकि मोहब्बत है तभी तो वो दिल की तह तक पहुंचा है

वहम ये हैं कि उसे भी मोहब्बत है मुझसे।


हां ये वहम ही तो है, गर सच में मोहब्बत होती तो क्या उसके दिल की सीढ़ी की मुझे खबर ना होती ? यक़ीनन होती खबर।


पूरी ना सही पर कुछ सीढ़ीयां तो मैं नीचे ढल ही चुकी होती पर ऐसा तो कुछ भी नहीं हुआ हैं

क्योंकि वो अब तक रूबरू नहीं आया है

क्यूं फिर भी दिल मानने को तैयार ही नहीं है कि उसे मुझसे मोहब्बत नहीं है।


हां हां शायद इसे ही वहम कहते हैं

जो असल में होता ही नहीं है वो भी असल में नजर आने लगता हैं

मुझे मोहब्बत है पर उसे मुझसे मोहब्बत नहीं है।


शायद मोहब्बत हो गई है इसलिए मैंने खुद ही उसे अपने दिल की सीढ़ी का पता दिया हैं और वो तह तक पहुंचा है

और उसे मोहब्बत नहीं है इसलिए मैं उस रस्ते से अब तक अनजान हूं जो मुझे उसके दिल की गहराइयों तक ले जाएं।


दिल की सीढ़ी ...... क्या सबके दिल में होती हैं जन्म से ही यां जब मोहब्बत हो जाती हैं तो खुद-ब-खुद ही उभर कर दिखने लगती हैं। 

                                         @ रेखा खन्ना

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