आएगी सुबह सुहानी ©आशीष हरीराम नेमा
आएगी सुबह सुहानी .....
माना अंधियारा घोर घना है ,
इसके बढ़ने का डर दुगुना है ।
चाहे जितना पैर पसारेगा ,
तय है एक रोज ये हारेगा ।
मिटनी है व्याप्त निराशा,
और फिर से हैं खुशियाँ छानी ....।
आएगी सुबह सुहानी .......।।
तम के आने के कारण पर ,
इसके जटिल निवारण पर ।
अब सुबह से कितनी दूरी है ,
इस पर अभी मनन जरूरी है ।
यह समय है जो अंधियारे का ,
संदेश है उस दुखियारे का ।
जिसने सृष्टि को रंग दिए ,
जीवन जीने के ढंग दिए ।
वह स्वच्छ गगन में रहता था ,
नदियों के संग संग बहता था ।
कभी पंछियों संग उड़ान भरे ,
निर्जीव में भी जो प्राण भरे ।
मिट्टी की सौंधी सुगंध में था ,
मदमस्त पवन स्वछंद में था ।
जग-सृजक का गौरव उसे प्राप्त था ,
वह यत्र-तत्र सर्वत्र व्याप्त था ।
फिर उसके एक खिलौने ने ,
समझाइश, अक्ल के बौने ने ।
प्रकृति से यूँ खिलवाड़ किया ,
दोहन के तिल का ताड़ किया ।
निज स्वार्थ हेतु खोदा थल को ,
दूषित किया नदियों के जल को ।
ताकि रहे स्वयं वो ऐशों से ,
नभ भरा विषैली गैसों से ।
वन-उपवन वृक्ष उखाड़ दिए ,
जीवों के घर भी उजाड़ दिए ।
ऐसी उन्नत फसलें काटी ,
कि सनी रसायन से माटी ।
इतने पर भी संतोष नहीं ,
कहता मेरा कोई दोष नहीं ।
यहाँ स्वार्थ से ऐसा हार गया ,
कि मानवता को भी डकार गया ।
कृत्य देख निज कृति के ऐसे ,
सृजक रहे प्रकृति में कैसे ।
इस हेतु सृजक विलुप्त हुआ ,
बस तभी उजियारा गुप्त हुआ ।
अब विपदा ने जग को घेरा है ,
परिणामस्वरूप यह अंधेरा है ।
करनी का यह फल कम ही हैं ,
वह बुरे खिलौने हम ही हैं ।
होना सचेत या फिर बदतर,
है निर्णय हम पर ही निर्भर ।
प्रकृति का दोहन सीमित हो ,
मानवता फिर से जीवित हो ।
प्रकृति में सृजक पुनः बसे ,
हो आलोकित सृष्टि सदा हँसे ।
संकल्पित हो प्रकृति सँवारेंगे ,
तब ही अंधियारे हारेंगे ।
निश्चित ही जीतेंगे तम से,
हम सबने है यह ठानी ...।
लाऐंगे सुबह सुहानी ......।।
✒आशीष हरीराम नेमा
Waah sir ji shaandaar rachna...ekdum sarahniye aprateem👌👌👏🔥
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएं🔥👏👏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद 🙏
हटाएंBahut Sundar 😍 😍
जवाब देंहटाएंधन्यवाद 🙏
हटाएंवाहहह मस्त
जवाब देंहटाएंधन्यवाद 🙏
हटाएंवाह! 👌✨✨
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंबेहद खूबसूरत पंक्तियाँ 👌👌👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंधन्यवाद
जवाब देंहटाएंधन्यवाद 🙏
जवाब देंहटाएंआप सभी का हृदयतल से धन्यवाद
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