अधूरा इश्क़ ©अंजलि

 पाक-सा शक्स मिला एक अफसाने में,

खोला जो खुद का ये दिल अनजाने में।


मैं नहीं जानती थी सुकून उसके दिल का,

पर दिल लगा रहा उस दिल को बहलाने में।


हर्फ-दर-हर्फ सजाए जो अपने जज़्बात,

अब मज़े लेती थी तन्हाई उन्हें दोहराने में।


इर्द-गिर्द बेतरतीब छाई थी यादें उसकी,

सुनती थी उसी की आहट मैं विराने‌ में।


रस्म-ए-आशिकी निभाई उसके इंतज़ार में,

बहुत वक्त लगा फिर एक नई सुबह आने में।  

                                                             @ Anjali

टिप्पणियाँ

  1. आप सभी का हृदयतल से धन्यवाद

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