ग़ज़ल ©सुभागा भट्ट
राहें जो तकलीफ़ दें तो क्या चलना छोड़ दें,
हुआ न रोशन तो क्या सूरज ढलना छोड़ दे।
वक्त से पहले ही बूढ़े हो चुके हमकदम,
जो मिले न ख़ुशी तो क्या मचलना छोड़ दें।
यह भी नहीं कि सब कुछ मिल जाए अब,
जो मिला नहीं क्या उसके लिए बहलना छोड़ दें।
किया जज़्ब ख़ुद को तो भला हासिल क्या हुआ?
कभी गिर, कभी उड़ ज़्यादा संभलना छोड़ दे।
©सुभागा भट्ट
वाह सुभागा जी। खूबसूरती संजोए...🌹👌✨
जवाब देंहटाएंBehad khubsurat ma'am!!!
जवाब देंहटाएं👌🌹✨
जवाब देंहटाएंवाह्ह्हह्ह्ह्ह
जवाब देंहटाएंवाहहहहहह खूबसूरत
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंShandaar gazal ma'am 👌👌👏
जवाब देंहटाएंवाह बेहद खूबसूरत 👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंवाह 👏
जवाब देंहटाएंGazab ma'am👌👌
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत पंक्तियाँ 💕👌👌👌
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