ग़ज़ल ©सुभागा भट्ट

 राहें जो तकलीफ़ दें तो क्या चलना छोड़ दें, 

हुआ न रोशन तो क्या सूरज ढलना छोड़ दे। 


वक्त से पहले ही बूढ़े हो चुके हमकदम, 

जो मिले न ख़ुशी तो क्या मचलना छोड़ दें। 


यह भी नहीं कि सब कुछ मिल जाए अब,  

जो मिला नहीं क्या उसके लिए बहलना छोड़ दें।


किया जज़्ब ख़ुद को तो भला हासिल क्या हुआ? 

कभी गिर, कभी उड़ ज़्यादा संभलना छोड़ दे।


                                                                  ©सुभागा भट्ट

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