गीत ©संजीव शुक्ला
मेरे बाद मुझे स्वर देना l
आश्वासन यह प्रियवर देना,
तुच्छ सोच को आदर देना l
मेरे सपनो की उड़ान को,
प्रिय तुम विस्तृत अंबर देना l
मेरे बाद मुझे स्वर देना ll
सागर से कुछ मोती खोजे,
लेकिन उनका मोल न पाया l
कुछ मुक्ता जगमग देखे पर,
सीप बंध को खोल न पाया
यत्र-तत्र बिखरे मनकों से,
चुन-चुन स्वर्ण थाल भर देना l
मेरे बाद मुझे स्वर देना ll
ज़ब मैं था तब समय नहीं था,
मैं ही नही समय ज़ब आया l
प्रस्तर खंडों का जीवन भर,
मैं अज्ञानी ढेर लगाया l
अनगढ़ पत्थर गढ़-गढ़ कर सब,
तुम अनमोल रत्न कर देना l
मेरे बाद मुझे स्वर देना ll
मैंने कब सोचा था मुक्ता,
मणि का मैं व्यापार करूँगा l
मात्र बावरी अभिलाषा थी,
जग-मग सब संसार करूँगा l
मेरे बाद मेरे अनिकेतन,
भावों को सुंदर घर देना l
मेरे बाद मुझे स्वर देना ll
©sanjeevshukla_
बेहतरीन 👏
जवाब देंहटाएंमन भावुक करने वाली रचना 👌👌👌👌
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हटाएंअत्यंत उत्कृष्ट एवं भावपूर्ण सृजन 👌👌👌💕
जवाब देंहटाएंबेहद ख़ूबसूरत
जवाब देंहटाएंसरस रचना 👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना मनमोहक 👌👌
जवाब देंहटाएं💐
हटाएंBahut khoob 👌👌
जवाब देंहटाएं🙏
हटाएंAprateem rachna sir👌👌👌👏
जवाब देंहटाएंआप सभी का हृदयतल से धन्यवाद
जवाब देंहटाएं💐😊
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