विज्ञान ©अनिता सुधीर

रहना था कितना आसान ,पढ़े नहीं थे जब विज्ञान ।


दिन भर धक्का दें दीवार ,फिर भी करते सब बेगार।
हुआ अँधेरा,पढ़ा प्रकाश,विद्युत करता सब कुछ नाश।
भौतिक की ये है पहचान ,बने इसी से मंगल यान।
रहना था कितना आसान ,पढ़े नहीं थे जब विज्ञान ।


कमी आयतन,बढ़ता दाब,इसे बढ़ायें ,चढ़ता ताप ।
समीकरण में अटके प्राण,जितने बंधन उतना त्राण।
भेद रसायन है अनजान ,नोबल पाते फिर विद्वान ।
रहना था कितना आसान ,पढ़े नहीं थे जब विज्ञान ।


ज्या कोज्या करता परिहास,ब्याज क्षेत्र से लगती आस ।
रेखा बोती ऐसे बीज ,अंक भला फिर क्या है चीज,
संख्याओं में लटकी जान,
 करे समन्वय अब हैरान ।
रहना था कितना आसान ,पढ़े नहीं थे जब विज्ञान ।

जीव जंतु के अद्भुत नाम ,वायरस से जीना हराम।
उलझा बोस जी का बयान,पौधों में होते हैं प्रान
डार्विन पर दुनिया गतिमान,प्राणि तंत्र से निकले जान।
रहना था कितना आसान ,पढ़े नहीं थे जब विज्ञान ।

पढ़ा ध्यान से अब विज्ञान,
तकनीकी का अद्भुत ज्ञान 
सही करो इसका उपयोग,
होगा जन जन का कल्यान।
जुड़ा योग संग जब  विज्ञान,
भारत विश्व गुरू पहचान ।।
रहना था कितना आसान ,पढ़े नहीं थे जब विज्ञान ।।

                                                 @अनिता सुधीर आख्या

टिप्पणियाँ

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  2. Bahut khoosurabt Likha ma'am purni yaade taaza ho gyi❤️😍😍

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  3. बहुत सुंदर लिखा है आपने . ..सच में सही उपयोग अगर विज्ञान का दुनिया करे ..सही मायने में प्रगति तभी होगी 🙏🏻🙏🏻😊💐💐

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  4. बहुत सुन्दर लिखा आपने दी ...विद्यार्थी जीवन की याद आ गयी 👏👏👏👌👌👌

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  5. आप सभी का हृदयतल से धन्यवाद

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