कोंपले मोहब्बत की ©रेखा खन्ना

 मोहब्बत की कोंपले नहीं फूटती अब दिल के अंदर

जाने वाला शख्स दिल की जमीं बंजर कर गया।।


कभी बहार ही बहार छाई थी मोहब्बत की

अब वीरानों में ना जाने सब कुछ कैसे बदल‌ गया।।


जो चहकता था कभी मोहब्बत की चिड़िया के जैसा

वो दिल अब गुमसुम और चुपचाप सा हो गया।।


यूं तो मोहब्बत में खाई थी साथ जीने मरने की कसमें

मुझे मरना सीखा कर वो जिंदगी के दामन से लिपट गया।।


आंखों से बहने वाले आंसू अब दिल में ही गिर जाते हैं

चेहरे को भीगे हुए अब इक ज़माना बीत गया।।


क्यूं मोहब्बत की तासीर इतनी कड़वी हैं

जिंदगी जीने की चाहत रखने वाला बेमौत ही मर गया।।


                                                                  @ रेखा खन्ना

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